हमारे कई वृद्ध देशबन्धु नेटलमें अर्दलीके रूपमें गये हैं। श्री एम० ए० तर्खड, भूतपूर्व उपाध्यक्ष, राजकुमार कॉलेज, काठियावाड़; श्री जे० एम० परीख, बैरिस्टर; और लेफ्टिनेन्ट कर्नल कांताप्रसाद, आई० एम० एस० (निवृत्त) जो पहले भी पाँच विभिन्न लड़ाइयों में सेवा कर चुके हैं, इस समय नेटलेमें अर्दलीका काम कर रहे हैं।
[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-१२-१९१४
[ लन्दन ]
कार्तिक वदी २ [ नवम्बर ५, १९१४]
चि० छगनलाल,
तुम्हारा पत्र मिल गया है।
श्री पोलकको मेरा यहाँसे लिखना ठीक नहीं होगा। तुम और श्री वेस्ट दोनों मिलकर जैसा उचित समझो, कर लेना । इतनेपर भी यदि तुम चाहो कि मुझे लिखना ही चाहिए तो मैं उन्हें लिख दूंगा। मगनलालने जहाँ तक हिसाब किया था उससे आगेके आंकड़े भेजना ताकि समय आनेपर मैं बम्बईमें हिसाब प्रकाशित कर सकूँ । श्री गोखले हिसाबके बारेमें कुछ नहीं कर पाये हैं। वे ऐसा कह गये हैं कि जबतक कमेटीसे मेरी मुलाकात न हो जाये, हिसाबका ब्यौरा प्रकाशित न किया जाये।
मुझे यहाँ तीन महीने तो और रहना होगा । देखें, और क्या होता है। मैंने दूसरा प्रस्ताव भी भेजा है। उसकी नकल श्री पोलक तुम्हें भेजेंगे। उससे तुम्हें पता चलेगा कि मैं दक्षिण आफ्रिका और भारत-स्थित अपने दलको भी सम्मिलित करना चाहता हूँ ।
अब खाटपर नहीं हूँ । थोड़ा- होता है सो देखना है। मुझे मेरी तबीयत अभीतक ठीक नहीं हो पाई है पर थोड़ा चलने-फिरने लगा हूँ । इसका क्या परिणाम चलना-फिरना शुरू किये आज तीसरा दिन है।
मैं कराची जा सकूँगा, यह सम्भव नहीं प्रतीत होता । जहाँ भारतीय घायल लोग हैं वहाँ पहुँचनेकी सम्भावना है। हो सकता है बा और श्री कैलेनबैक भी मेरे साथ जा सकें। श्री कैलेनबैक मेरे साथ ही रहते हैं और अभी तो रहेंगे। उन्हें भी अनु- मति- पत्र लेना पड़ा है। परन्तु कोई तकलीफ नहीं है।
चि० मगनलालके पत्र इसके साथ भेज रहा हूँ । लेखादि तो तुम्हें भेज ही चुका आगे कुछ प्रगति नहीं कर पाया हूँ । यदि तबीयत ठीक रही तो उम्मीद है लिख सकूँगा। कल कुमारी स्मिथ कह रही थीं कि वे सामग्री बराबर भेजती हैं।
१. यह उपलब्ध नहीं है।
२. फीनिक्स दलसे मतलब है।
३. वह प्रति सप्ताह " लन्दनकी चिट्ठी" भेजा करती थीं।