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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

परिचारकोंका काम पहलेसे ही कर रहे हैं। कोरके चिकित्सक सदस्योंको छोड़कर, अब बहुत कम लोग बच रहे हैं जो भविष्य में जरूरत पड़नेपर काम कर सकें।

अतएव क्या मैं आपके स्तम्भोंके सौजन्यका इतना लाभ उठा सकता हूँ कि संघ साम्राज्य में रहनेवाले युवा भारतीयोंसे अपील करूँ कि वे अपना नाम तुरन्त ही इस कामके लिए लिखवा लें। मेरी नम्र रायमें भारतीय सिपाहियोंकी सेवा करके उन्हें स्वस्थ बनाना एक गर्वका विषय होना चाहिए। कर्नल बेकर और परिचारकोंके लिए माँग कर रहे हैं। और पर्याप्त संख्या पूरी करनेके लिए तथा अपने युवकोंको प्रोत्साहन देनेके लिए कतिपय बुजुर्ग भारतीय जो अच्छे ओहदोंपर थे, वे परिचारक बनकर नेटले चले गये हैं, अथवा जा रहे हैं। उनमें काठियावाड़के राजकुमार कालेजके पूर्ववर्ती उपाध्यक्ष श्री एम० ए० तर्खड़, श्री जे० एम० परीख, वैरिस्टर-एट-लॉ; और इंडियन मेडिकल सर्विसके (निवृत्त) लेफ्टिनेंट कर्नल कान्ताप्रसाद जो पाँच आन्दोलनों में भाग ले चुके हैं, शामिल हैं।

मैं आशा करता हूँ कि इन सज्जनोंका दृष्टान्त अन्य लोगोंको ऐसे ही उत्साहसे प्रेरित करेगा और अनेक भारतीय जो किसी भी प्रकारसे ऐसा कर सकेंगे वे इस आगत आपत्तिकालमें सहायक होंगे। जो अपना नाम दर्ज कराना चाहते हैं वे १६, ट्रिबोविर रोड, अर्ल्स कोर्टके पास, इंडियन वालंटियर कमेटीके कक्षमें, कामकाजके समय में, कभी भी करवा सकते हैं।

आपका,

मो० क० गांधी

अध्यक्ष

भारतीय स्वयंसेवक समिति

[ अंग्रेजीसे ]

इंडिया, ६-११-१९१४

४०८. एक परिपत्र'

[ लन्दन ]

नवम्बर ४, १९१४

पिछले रविवारको नेटले अस्पतालमें लगभग ४७० घायल भारतीय सैनिक थे । शीघ्र ही उनके वहाँ आनेकी आशा है, जो अबतक यदि पहुँच नहीं पाये हों तो पहुँचते ही होंगे। भारतीय स्वयंसेवक दलके सभी उपस्थित सदस्य नेटलेमें नर्स या अर्दलीके रूपमें काम कर रहे हैं। और ज्यादा अर्दलियोंकी मांग है।

समितिका विचार है कि इसे एक गौरवपूर्ण सुअवसर समझना चाहिए कि हमें अपने ही घायल देशबन्धुओंकी सेवा-सुश्रूषाका अवसर मिला है। हमारे सामने जो काम है उसको सँभालनेके लिए कमसे-कम और दो सौ आदमियोंकी भर्ती करनेकी जरूरत है। तीन महीनेसे अधिक सेवा करनेकी जरूरत न पड़ेगी। इसलिए, भर्ती होनेके बाद विद्यार्थियोंको अपने समयमें से तीन माससे अधिक समय नहीं देना पड़ेगा।

१. इस परिपत्रपर गांधीजी और गणदेवियाके हस्ताक्षर थे ।