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सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय


नहीं मिलता है और बिना किसी प्रकारकी हलचल किये लिखने आदिका ही काम करता है, उसके लेख आदि भी वैसे ही सुस्त होते हैं, जैसा वह स्वयं होता है। अपने अनुभवका उल्लेख करते हुए वे कहते हैं कि उन्होंने जो अच्छीसे-अच्छी पुस्तकें लिखी है, वे उस समय लिखी है जब वे अधिकसे-अधिक घूमा करते थे। प्रतिदिन चार-पाँच घंटे घूमना तो उनके लिए कोई बात ही नहीं थी। हमें जब सचमुच भूख लगी हो, उस समय जिस प्रकार हम काम नहीं कर सकते, वैसा ही व्यायामके सम्बन्धमें भी होना चाहिए। अपने मानसिक कामकी माप करना हम नहीं जानते। इसीलिए हम यह नहीं देख पाते कि शारीरिक व्यायामके अभावमें जो मानसिक कार्य किये जाते हैं वे नीरस और निर्जीव होते हैं। घूमने से शरीरके हर भागमें खूनका दौरा तेजीसे होता है। उससे प्रत्येक अंगकी कसरत हो जाती है और सारे अंगोंका ठीक-ठीक गठन सम्भव होता है। याद रखना चाहिए कि घूमने में हाथ-पाँवोंका संचालन गतिके साथ हो। घूमनेसे हमें शुद्ध हवा भी मिलती है और बाहरके भव्य दृश्य भी हम देख पाते हैं। हमेशा एक ही स्थानपर या एक ही गलियोंमें नहीं घूमना चाहिए, बल्कि खेतों और कुंजोंमें घूमने जाना चाहिए। इससे प्रकृतिकी शोभाके महत्त्वको भी हम आँक सकेंगे। दो मील घूमना कोई घूमना नहीं है। दस-बारह मील घूमें तो घूमना माना जायेगा। जो लोग प्रतिदिन ऐसा नहीं कर सकते, वे प्रति रविवारको खूब घूम सकते हैं। एक बीमार किसी अनुभवी वैद्यके यहाँ दवा लेने गया। उसे अजीर्णकी तकलीफ थी। वैद्यने उसे सदा थोड़ा-बहुत घूमनेकी सलाह दी। बीमारने कहा कि उसमें जरा भी ताकत नहीं है। वैद्यने सोचा कि बीमार कुछ डरपोक है। वह उसे अपनी गाड़ीमें ले चला और मार्गमें अपना चाबुक जान-बूझकर नीचे गिरा दिया। भलमनसाहतके नाते बीमारको चाबुक लेने के लिए नीचे उतरना पड़ा। इतने में वैद्यजीने अपनी गाड़ी जोरसे हाँक दी। बेचारे बीमारको हाँफते-हाँफते गाड़ीके पीछे भागना पड़ा। जब वह काफी दूर भाग चुका, तब वैद्यजीने गाडीको घुमाया और बीमारको उसमें बिठाया और उसे समझाकर कहा कि घूमना ही तुम्हारे लिए दवा है। मुझे इसीलिए इस क्रूरतापूर्ण ढंगसे तुम्हें घुमा कर दिखाना पड़ा। बीमारको खूब कसकर भूख लग आई थी, अतः उसने और सब भूल कर वैद्यके प्रति कृतज्ञता प्रकट की और घर पहुँच कर जी भरकर भोजन किया। जिन लोगोंको घूमनेकी आदत नहीं है और जिन्हें बदहजमी तथा उससे उत्पन्न अन्य रोग होते हैं, ऐसे लोगोंको चाहिए कि वे घूमनेका प्रयोग कर देखें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-४-१९१३