पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/५७९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३९
पत्र : 'इंडिया' को

रहती है, वहाँ जानेके बाद लड़कोंकी आत्मापर वातावरणका क्या प्रभाव पड़ा, आदि- आदि समाचार विस्तारसे देना।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यु० ५७७५) से।

सौजन्य : श्रीमती राधाबेन चौधरी

४०६. पत्र: छगनलाल गांधीको

[ लन्दन ]

कार्तिक सुदी १३ [अक्तूबर ३१, १९१४]

चि० छगनलाल, तुम्हें लम्बा पत्र लिख सकूँ ऐसी परिस्थिति ही नहीं है। मैं अभी खाटपर हूँ और भय है कि और पड़ा रहना पड़ेगा। यों डरनेकी कोई बात नहीं है।

श्री पोलक जो रकम उठाते हैं उन्हें उठा लेने दी जाये। दूसरा चारा नहीं है। तुम चाहो तो उनके साथ इस सम्बन्धमें चर्चा कर सकते हो। मैं यहाँसे तुम्हें इस बाबत कोई सलाह दे सकूँ ऐसा नहीं लगता। लक्ष्मीके सम्बन्धमें लिख ही चुका हूँ ।' मुझे अभी कितना रहना पड़ेगा, कहा नहीं जा सकता ।

यहाँ सत्याग्रहका निबटारा हो चुका है। हमारी माँगें पूरी हो चुकी हैं।

भाई प्रागजी तथा रावजीभाईसे कहना कि मैं उन्हें भी पत्र लिखनेवाला हूँ।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (एस० एन० ६०६०) की फोटो-नकलसे ।

४०७. पत्र: 'इंडिया' को

[ लन्दन ]

नवम्बर ४, १९१४

सेवामें

सम्पादक

'इंडिया'

[ लंदन ]

महोदय,

पिछले इतवारको नेटले अस्पतालमें लगभग ४७० घायल भारतीय सैनिक थे। शीघ्र ही वहाँ और भी बहुतसे घायलोंके पहुँचनेकी सम्भावना है, जो अबतक यदि पहुँच नहीं पाये हों तो पहुँचते ही होंगे। भारतीय स्वयंसेवक परिचारिकों (वालंटियर ऑर्डरली) की जरूरत पहलेसे बहुत अधिक है। स्थानीय भारतीय कोरके लगभग ७० सदस्य वहाँ

१. यह पत्र उपलब्ध नहीं है ।