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पत्र : मगनलाल गांधीको

हिदायत है कि कमसे-कम एक पखवाड़े तक बिस्तरसे न उठूढूँ। इसलिए यदि आप आ सकनेका समय निकाल सकें तो मैं बहुत आभारी होऊँगा।

कोई भी दिन व समय मेरे लिए उपयुक्त रहेगा ।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

गांधीजीके हस्ताक्षरयुक्त टाइपकी हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६०६९ 'बी') से।

४०४. पत्र : मगनलाल गांधीको

लन्दन

कार्तिक सुदी ७, १९७१ [ अक्तूबर २५, १९१४]

चि० मगनलाल,

मैं तुम्हें पत्र न लिख सका ।

आज तबीयत अच्छी है इसलिए लिखने बैठ गया हूँ । वैसे हूँ तो आज भी खाट- पर ही; लगता है अभी और १० दिन पड़े रहना होगा । इस बारकी तकलीफ तो बेहद रही। मेरा खयाल है कारण यही हुआ कि मैंने अपने डॉक्टर मित्रोंका कहना मान लिया। चूंकि सभीका आग्रह था मैंने उन पदार्थोंको लेना स्वीकार कर लिया जिनके बारेमें मैंने अन्तिम रूपसे आपत्ति नहीं की थी। चार दिन तक मैं दाल-भात, और सब्ज़ियाँ खाता रहा, और इस पूरी अवधिमें दर्द भी बढ़ता गया और जिस दर्दके शमनके विचारसे यह सब लेनेको कहा गया था, वह न गया । पाँचवें दिन मैंने नमक ले लिया और उस दिन तो वेदना असह्य हो गई। छठवें दिन मैंने डॉक्टरोंसे पिंड छुड़ाया और अपने ही उपचारोंपर आया। एकदम वेदना कम पड़ गई और बवासीरमें भी लाभ हो गया। परन्तु बीच में मेरी ही मूर्खताके कारण फिर दर्द उठा । जिस दिन नमक खाया उस दिन जीवनमें पहली बार कफमें खून आया; अभीतक आ जाता है। अतः श्री कैलेनबैक मेरे एक परिचित शाकाहारी गोरे डॉक्टरको ले आये। उसने कहा कि नमककी जरूरत नहीं है; पर कन्द-मूलकी आवश्यकता बतलाई और कहा कि उपवासके कारण शरीर एकदम क्षीण हो गया है इसलिए अभी तेल, बादाम आदि तो बिलकुल नहीं दिये जा सकते; और इसलिए अभी मैं जौका पानी, आठ औंस ताजा मेवा और आठ औंस शलजम, गाजर, आलू और पत्तागोभी आदिके पेयपर हूँ। शरीर बहुत ही क्षीण हो चुका है। मुझे तो इस [ उपचार] में भी विश्वास नहीं है परन्तु स्वास्थ्यकी कुंजी अभी मेरे हाथ नहीं लगी है इसलिए यह प्रयोग करके देख रहा हूँ। दर्द तो बन्द है पर कफमें खून जारी है। भोजनमें रुचि तो नामको भी नहीं रही इसलिए जीभपर संयम रखनेका यह अच्छा मौका हाथ लगा है। डॉक्टरने नीबू भी बन्द कर दिया है। यों बिना तेलके उबले हुए शलजम, गाजर और गोभीके भोजनमें स्वाद तो नामको भी नहीं रहा। पर मैं प्रसन्नतापूर्वक यह ले रहा हूँ। जौका पानी भी पहले-पहल तो खराब लगा। पर अब तो लगता है उसे