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४०१. जे० ई० ऍन्ड्रयूजको लिखे पत्रका अंश'

लन्दन

अक्तूबर २०, १९१४

चार्ली मुझे लिखते रहे हैं.... सम्भवतः उनके पादरीका बाना छोड़ देनेसे आप दुःखी होंगे। किन्तु मेरी समझमें बात ऐसी नहीं है। यह कोई परिवर्तन नहीं है, बल्कि मुझे भरोसा है कि परिवर्धन है। वे अपने आचरणके द्वारा शिक्षा देते हैं, जैसा कि बहुत कम लोग करते हैं; और वे जो शिक्षा देते हैं, शुद्ध प्रेमकी देते हैं...जाहिर है कि चार्लीका एक सदुद्देश्य (मिशन) है; और वह कितना महान् है इसके बारेमें उनके बिलकुल निकटके लोगोंको भी कुछ नहीं मालूम। मैं आपसे उनके कामोंको आशीर्वाद देनेकी प्रार्थना करता हूँ। उन्हें यह जानकर बड़ी राहत मिलेगी कि आपको उनके इस कार्यसे दुःख नहीं हुआ है।

[अंग्रेजीसे ]

चार्ल्स फ्रीअर ऐन्ड्रयूज

४०२. पत्र : सी० रॉबर्ट्सको

१६, ट्रेबॉविर रोड, एस० डब्ल्यू०

[ लन्दन ]

अक्तूबर २२, १९१४

प्रिय श्री रॉबर्ट्स,

आपका पत्र मुझे आज सुबह मिला । धन्यवाद !

मैं रेड क्रॉसकी टुकड़ियोंपर लागू होनेवाले विनियमोंसे अनभिज्ञ हूँ। मैं मानता हूँ कि अपने अनोखेपनके कारण भारतीय रेडक्रास 'कोर 'के जत्थोंसे जुदा माना जा सकता है। वह रेड क्रासका अंश केवल इसलिए माना जाता है कि वाइसरायकी ऐसी इच्छा है (निस्सन्देह 'कोर' की बेहतर हिफाजतके लिए) । फिर भी मैं समितिको आपके पत्रमें वर्णित स्थिति स्वीकार कर लेनेके लिए और जो कर्त्तव्य उसने दुःखी होकर छोड़े थे उन्हें फिर प्रारम्भ करनेकी सलाह देनेको तैयार हूँ। परन्तु इसके पहले कि मैं समितिको सलाह दूं, मैं एक आश्वासन चाहूँगा कि सलाह-मशविरेका सिद्धान्त जिसे कर्नल बेकर मान्यता देनेवाले हैं, केवल व्यक्तिगत रूपसे मेरे लिए नहीं होगा बल्कि मेरी पूरी समितिपर

१. अगस्त १९१४ के प्रारम्भमें, ऐन्ड्यूजने अन्तःप्रेरणापर पादरीका पद छोड़नेका निर्णय किया और उनके पिता तथा कुछ मित्र इस निर्णयसे क्षुब्ध हुए । इसलिए गांधीजीने ऐन्ड्यूजके पिताको पत्र लिखा । किन्तु इस पत्रका पूरा पाठ उपलब्ध नहीं है ।