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४००. पत्र : सी० रॉबट्सको

[ लन्दन ]

अक्तूबर १६, १९१४

प्रिय श्री रॉबर्ट्स,

इण्डियन फील्ड एम्बुलेंस ट्रेनिंग कोरके सिलसिले में एक बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण परि-स्थिति पैदा हो गई है, जिसमें यदि सही ढंगसे काम न किया गया तो यह संगठन छिन्न-भिन्न हो जायगा।

कर्नल बेकरने पिछले हफ्ते कोरके सदस्योंकी इच्छाका कोई खयाल किये बिना शाखा कमाण्डरोंकी नियुक्ति की थी। उससे बड़ा असन्तोष फैल गया था और जब मुझे उसका व्यौरा बतलाया गया, तो मुझे भी वह असन्तोष उचित लगा। मैंने मंगलवारकी सुबह कर्नल बेकरसे उन नियुक्तियोंको वापस ले लेनेकी और उनके स्थानपर कोरके सदस्यों द्वारा चुने हुए लोगोंको नियुक्त करनेकी अपील की, और यह भी कहा कि यदि सदस्यों द्वारा चुने हुए लोगोंको कर्नल बेकर स्वीकार नहीं करेंगे तो सदस्यगण दूसरे लोगोंको चुनेंगे। लेकिन आश्चर्य है कि कर्नल बेकरने फिर भी एक ऐसा रुख अख्तियार किया जिसे मेरे खयालसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। उनका विचार था इन सदस्योंको यदि कोई शिकायत थी तो उसे शाखा कमाण्डरोंके जरिये ही उनके सामने पेश किया जाना चाहिये था और नियुक्तियाँ रद करना तो अनुशासनको बिलकुल ही धता बतलाना होगा।

इसपर मेरी समितिने तुरन्त ही कोरके सदस्योंकी एक बैठक बुलाई और उसमें बुधवारकी रातको एक प्रस्ताव पास किया गया। प्रस्ताव में कर्नल बेकरसे अनुरोध किया गया था कि वे नियुक्तियोंको रद कर दें और उनके अनुमोदनके लिए हमें नये नाम पेश करनेकी अनुमति दें। इतना ही नहीं कि उन्होंने हमारा अनुरोध नहीं माना, उन्होंने तो हमारे बैठक बुलानेको ही सैनिक अनुशासन भंग करना बतलाया।

मेरा मत है कि कर्नल बेकरने अपनी स्थितिको और कोरकी स्थितिको भी बहुत ज्यादा गलत समझा है।

मेरा ख्याल है कि :

१. अभी इस समय तक हम लोग एम्बुलेंसका काम सीखनेवाले प्रशिक्षणार्थी- भर हैं।

२. हमने अभी तक उस करारपर दस्तखत नहीं किये हैं जो हमें सैनिक अनुशासन माननेके लिए वचनबद्ध बना देगा।

३. दल (कोर) का अपना अन्दरूनी प्रशासन कार्य वालन्टियर कमिटीके हाथमें रहना चाहिए।

४. हमारी सेवायें स्वेच्छासे सहायता कार्य करनेवाली एक टुकड़ीके रूप में ही स्वीकार की गई हैं और इसलिए हमारे ऊपर पूरा सैनिक अनुशासन लागू नहीं किया जा सकता।