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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-१५]


उन राजाओंके मनोबलके बारेमें हमने क्या देखा है जो बड़े खिलाड़ी हैं। दूसरी ओर जो लोग बड़े मनोबलवाले हैं, उनमें खिलाड़ी कितने हैं? अपने अनुभवके आधार-पर हम देखते है कि मनोबलवाले लोगों में से बहुत कम ही खिलाड़ी नजर आते हैं। विलायतमें आजकल खेलोंपर जोर है। खेलोंको अत्यधिक महत्त्व देनेवाले ऐसे लोगोंको उन्हींके एक महान कवि किपलिंगने अक्ल और इंग्लैंडका दुश्मन कहा है। इधर हमारे हिन्दुस्तानमें मनोबल-सम्पन्न सज्जनोंने दूसरा ही रास्ता अपनाया जान पड़ता है। ये लोग मनकी कसरत तो करते है, किन्तु उस परिमाणमें शरीरको बहुत ही कम या बिलकुल ही व्यायाम नहीं देते। ऐसे लोग अल्पजीवी हो जाते हैं। निरी मगजमारीके कारण इनके शरीर क्षीण हो जाते हैं, शरीरमें कोई-न-कोई रोग घर कर लेता है और उस समय जब कि उनका अनुभव देशके लिए बड़े कामका साबित हो सकता है, वे हमारे बीचसे चले जाते है। इसके आधारपर हम देख सकते हैं कि केवलं मनकी अथवा निरी शरीरकी कसरत ही पर्याप्त नहीं है। इसी प्रकार अनुत्पादक कोरा व्यायाम अथवा खेलों द्वारा प्राप्त व्यायाम भी समुचित नहीं कहा जा सकता।

जो व्यायाम मन और शरीर --दोनोंको साथ-ही-साथ और धीरे-धीरे सुशिक्षित बनाते चलते है वे ही सच्चे व्यायाम हैं। उन्हें करनेवाला मनुष्य ही स्वस्थ रह सकता है और यह मनुष्य केवल किसान ही हो सकता है। तो अब उसे क्या करना चाहिए जो किसान नहीं है? क्रिकेट आदि खेलोंसे मिलनेवाला व्यायाम तो उचित व्यायाम नहीं है। अतः हमें अब ऐसे व्यायामकी खोज करनी चाहिए जिससे किसानके-जैसा ही लाभ प्राप्त हो। व्यापारी अथवा दूसरे लोग अपने घरके आसपास बाड़ी बना सकते हैं और दो-चार घंटे खेती आदिका काम कर सकते हैं। फेरीवाले लोगोंको अपने धन्धे के साथ व्यायाम मिल जाता है। यह सवाल तो उठना ही नहीं चाहिए कि हम पराये घरमें रहते हैं तो उसकी जमीनमें कैसे काम करें। यह तो तंग मनकी निशानी है। किसीकी भी जमीनमें यदि हम खोदने और बोनका काम करें, तो उससे हमें लाभ ही होगा। ऐसा करनेसे हमारा घर सुधरेगा और हमें दूसरेकी जमीनको ठीक ढंगसे रखनेका सन्तोष भी प्राप्त होगा। अब उन लोगोंके लिए दो शब्द लिखनेकी जरूरत है जो न तो कसरत कर सकते है और न जिन्हें यह खयाल ही किसी प्रकार रुचता है। जमीनमें काम करनेके अलावा दूसरा सर्वोत्तम व्यायाम घूमनेका है। इसे व्यायामोंका राजा कहा जाता है और यह ठीक है। हमारे फकीर और सन्त बहुत तन्दुरुस्त होते हैं। इसके अनेक कारणोंमें एक कारण तो यह भी है कि वे गाड़ी, घोड़े आदि वाहनोंका उपयोग नहीं करते। वे अपनी सारी मुसाफिरी पैदल ही करते हैं। थोरो[१] नामक एक महान अमेरिकी हुए हैं। उन्होंने घूमने के व्यायामके सम्बन्धमें एक अत्यन्त विचारणीय ग्रन्थ लिखा है। वे कहते हैं कि जो मनुष्य इस बहानेसे घरसे बाहर नहीं निकलता कि उसे समय ही

  1. १. हेनरी डेविड थोरो (१८१७-६२), प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक, प्रकृतिवादी और दार्शनिक । उन्होंने कई ग्रंथ लिखे हैं जिनमें प्रकृति-विषयक वाल्डेन ऑर लाइफ इन द वुड्स, और एक्सकर्शन्स, नामक दो पुस्तकें भी हैं.। देखिए खण्ड ७, पृष्ठ २२०-२२