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पत्र: कर्नल आर० जे० बेकरको

ग्रहण न कर सकें। मैंने यह भी सोचा कि आप स्वयंसेवक दलके अध्यक्षकी हैसियतसे मेरी प्रातिनिधिक हैसियत मानने में उज्ज्र नहीं करेंगे । और दलपर जिन बातोंका असर पड़ता है अगर उनके बारेमें आपको लिखूँ तो नाराज नहीं होंगे। अपने इसी विचारके आधारपर मैंने एक सर्वथा मामूली व्यक्ति होते हुए भी आपको अपने कमरेमें आनेका निमन्त्रण देनेका साहस किया, ताकि हम परस्पर बातचीत कर सकें; क्योंकि मैंने देखा है कि पारस्परिक वार्ता पत्र-व्यवहारसे कहीं अधिक सन्तोषजनक सिद्ध होती है। यदि आप मेरी यह बात उपयुक्त समझें तो मैं अब भी आपसे आनेकी प्रार्थना करूंगा।

बहरहाल, इस बीच जो शिकायतें मेरे ध्यानमें लाई गई हैं वे ये हैं:

पहली, दल (कोर) के सदस्योंकी भावनाको ध्यान में रखे बिना वर्ग नेताओं (सेक्शन लीडर्स) की नियुक्तिसे बड़ा असन्तोष पैदा हुआ है। स्वयंसेवक निराश हुए हैं और उनके साथ भी इस पर निराशा हुई है कि नियुक्तिके सम्बन्ध में उनसे किसी तरह की कोई सलाह नहीं ली गई। भले ही जो नेता नियुक्त हुए हैं वे वांछनीय व्यक्ति हों, मैं उनमें से किसीको भी नहीं जानता, परन्तु मेरा खयाल है कि दलके कुशलतापूर्वक ठीक काम करनेके लिए ऐसे अफसरोंकी नियुक्ति आवश्यक है जो दलके सभी सदस्योंके प्यारे बन सके। इसलिए मैं यह सुझाव देता हूँ कि जो नियुक्तियाँ हो चुकी हैं वे रद कर दी जायें और इस दलके सदस्योंको उनमें वर्ग नेताओं और अन्य अधिकारियोंका चुनाव करने को कहा जाये और आप अन्तिम रूपसे मुकम्मिल नियुक्ति करें; यदि आप सदस्योंके चुनावसे सहमत न हों तो उस हालतमें जिनकी नियुक्ति आप अस्वीकृत कर दें, दलके सदस्य उनके स्थानपर अन्य लोगोंको चुनें।

अन्य शिकायतें कम महत्त्वकी हैं। जो कम्बल दिये गये हैं वे काफी नहीं हैं और उनकी लम्बाई भी कम है। खुराककी मात्रा और प्रकारमें भी परिवर्तनकी जरूरत है। और भी अन्य मामले हैं, जिन्हें मैं इस नोटमें शामिल नहीं करना चाहता, क्योंकि मुझे लगता है कि वैसे ही नोट बहुत लम्बा हो गया है।

आपका हृदयसे,

मो० क० गांधी

गांधीजीके हस्ताक्षर युक्त टाइपकी हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६०६९ 'बी') से ।



१. कोर उसी दिन इकट्ठी हुई और एक प्रस्ताव में इसे लिखित रूप दिया।

२. लगता है कि कर्नल बेकरने उसी दिन गांधीजीका नये वर्ग नेताओंकी नियुक्तिवाला सुझाव ठुकरा दिया।

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