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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

डटकर काम करना पड़ेगा। कुछ सप्ताहके शिक्षणके बाद कार्यक्षम हो जानेपर, वे विदेशों में तैनात भारतीय सेनाके साथ 'रेड क्रॉस सोसाइटी' की देखरेखमें एक टुकड़ीके रूपमें छः महीने तक काम करनेके लिए अपनी सेवाये अर्पित कर सकेंगे। उस सेवा में काम करनेकी शर्तें, इत्यादि बादमें घोषित की जायेंगी। परन्तु अभी इतनी आशा तो है कि 'रेड क्रॉस सोसाइटी' विदेश भेजी जानेवाली प्रत्येक टुकड़ीमें दस चिकित्सा- अधिकारियोंको और परिचर्या-चपरासियों, मरहमपट्टी करनेवालों, कम्पाउण्डरों, बैरों इत्यादिके रूप में काम करनेवाले पचास अन्य रंगरूट प्रशिक्षणार्थियोंको काम दिलानेमें सफल होगी। इस प्रकार बाहर भेजे जानेवाले चिकित्सा अधिकारियोंको शायद बीस शिलिंग प्रतिदिन और शेषको मुफ्त भोजनके साथ चार शिलिंग प्रतिदिन वेतन दिया जायेगा । इन पदोंके लिए चुनावमें उन रंगरूट प्रशिक्षणार्थियोंको ज्यादा योग्य माना जायेगा जिनका प्रशिक्षण कमांडिंग ऑफिसरकी रायमें, सबसे अधिक कार्य- क्षमतापूर्ण होगा।

[ अंग्रेजीसे ]

छपे हुए अंग्रेजी पर्चे (एस० एन० ६०५३) से।


३९५. पत्र : डॉ० अब्दुर्रहमानको

[ लन्दन ]

अक्तूबर १, १९९४

प्रिय डॉ० अब्दुर्रहमान,

मेरी समझमें आपको चाहिए कि आप मन्त्री महोदयको सूचित कर दें कि आप केवल मलय समाजका ही नहीं, उन मुसलमानोंका भी प्रतिनिधित्व करते हैं जो मलायाके नहीं हैं। साथ ही आपके मामलेपर उनको एक बयान अवश्य दिया जाना चाहिए। इस सप्ताह के 'इंडियन ओपिनियन' में आप वकीलकी राय पढ़ेंगे। उससे आपको पता चल जायेगा कि फैसलेका अधिवासी मुसलमानोंपर भी प्रभाव पड़ा है। [आप उन्हें बतायें ] कि आप चाहते हैं कि गैर-ईसाइयोंके उन विवाहोंको जो सम्बद्ध पंथोंके धर्म में विहित रीति से सम्पन्न हुए हों, मान्यता मिलनी चाहिए। यदि एक शिष्ट- मण्डलसे भेंट की जा सके तो समस्याका कोई हल निकल सकता है। उस अवस्थामें जो भावना जाग्रत हो गई है उसकी तीव्रताको मन्त्री महोदय समझेंगे। मुझे आशा है कि आप कानूनको बदलवा कर ही सन्तुष्ट होंगे- इससे कम किसी दूसरे कदम से नहीं। इसपर कोई भी आश्वासन पर्याप्त नहीं माने जा सकते।

आपका,

मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५७५८) की फोटो-नकलसे।