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पत्र : मगनलाल गांधीको

भेज दिया जायेगा। इसलिए अभी निकट भविष्यमें तो मेरा वहाँ आना हो नहीं सकता। लड़ाई जल्दी ही बन्द हो जाये तो और बात ।

तुम सब [ सम्भवतः ] यह जानना चाहोगे कि मैं घायलोंकी सेवाके काममें भी क्यों पड़ा। दक्षिण आफ्रिका में अभी कुछ ही दिन पहले तक मैं यह कहा करता था कि सत्याग्रहियोंके रूपमें हम घायलोंकी सेवामें भी मदद नहीं कर सकते क्योंकि वह भी लड़ाईको उत्तेजन देनेके बराबर है। कसाईखाने [ कसाईके काम में जो मदद नहीं करना चाहता वह कसाईका घर साफ करनेके काममें भी नहीं पड़ेगा। लेकिन मैंने देखा कि इंग्लैंडमें रहते हुए मैं एक दृष्टिसे लड़ाईमें भाग ले ही रहा हूँ | लड़ाईके इस कालमें लन्दनको जो खाद्य सामग्री मिलती है वह समुद्री बेड़ेकी रक्षाके कारण ही मिलती है। अतः ऐसी खुराक खाना भी दोषयुक्त हुआ और वह दोष तो मैंने किया है। इससे बचनेका एक ही उपाय था । उपाय यह था कि यहाँके पहाड़ोंमें, कन्दराओंमें चला जाऊँ और मनुष्यकी मददके बिना, कुदरतसे जो भी आच्छादन या खुराक मिल जाये उसीसे अपना काम चलाऊँ। चूंकि ऐसा करनेका आत्मिक बल अपने भीतर मैंने नहीं पाया इसलिए हाथ हिलाये बिना युद्ध-दूषित खुराक लेना भी अत्यन्त अनुचित लगा। जब हजारों लोग केवल इसलिए कि उन्हें ऐसा करना अपना कर्त्तव्य मालूम होता है, अपने प्राण अर्पित करनेके लिए निकल पड़े हैं, तो मैं कैसे बैठा रह सकता हूँ । बन्दूक तो यह हाथ कभी उठायेगा नहीं, इसलिए घायलोंकी सेवाका ही एक काम बाकी रह गया और वही मैंने ले लिया। मनके साथ मेरा जो सम्वाद हुआ उसका यह सारांश है। दृढ़ निश्चयके साथ मैं ऐसा नहीं कह सकता कि मैंने जो कदम उठाया है, ठीक ही है, किन्तु कई बार विचार करनेके बाद भी कोई दूसरा रास्ता अभी तक मुझे सूझा नहीं है ।

मेरा अनुमान है कि यहाँ हमें अभी कमसे-कम चार माह और लग जायेंगे। लड़ाई इससे ज्यादा नहीं चलनी चाहिए । बा की तबीयत ठीक रहती है; खूब चल-फिर सकती है। यहाँ तो उसने गेहूँ भी छोड़ दिया है। मैं जो कुछ कहता हूँ उसके सिवा वह केवल दूध और लेती है। श्री कैलेनबैकका स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा है। उनकी गुजरातीकी पढ़ाई चल रही है। भाई सोराबजी हमेशा मिलते रहते हैं। मेरे साथ लड़ाई [ के काम ] में दाखिल हुए हैं। इस क्लासमें हम ७० व्यक्ति हैं। उन्होंने पहली यानी प्रवेशकी परीक्षा पास कर ली है। बैरिस्टर होने में उन्हें तीन वर्ष और लगेंगे। ज्यों- ज्यों अनुभव बढ़ता जाता है त्यों-त्यों मैं देखता हूँ कि यहाँ आना और डिग्रियाँ प्राप्त करना बिलकुल बेकार है। विद्यार्थियोंकी स्थिति अत्यन्त दयनीय है। पढ़ते शायद होंगे, गुनते तो हैं ही नहीं। चारित्र्यका नाश हो जाता है। बहुत ही थोड़े लोगोंका. और वह भी पक्की उम्रके बाद - - यहाँ आना ठीक माना जा सकता है।

यह पत्र तुम सब लोग पढ़ना । इसकी नकल कर लेना और मूल पत्र डॉ० मेहता- को भेज देना । नकल चि० हरिलालको भेज देना । मुझे पत्र नियमपूर्वक लिखते रहो । पता इस प्रकार है:--८४/८५, पैलेस चैम्बर, वेस्ट मिन्स्टर, लन्दन । किसी दूसरेको अलगसे नहीं लिख रहा हूँ इसलिए यह पत्र सबके लिए समझना।

तुम सब लोगोंको अपनी स्थिति विषम महसूस हो रही होगी। ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह तुम्हारी सहायता करे और अपने कर्त्तव्यका पालन करनेमें दृढ़ता प्रदान