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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


होनी चाहिए। भले ही कैसा भी बुद्धिमान' शहरी आदमी हो, जब वह किसी किसानके घर जाता है तो दीन बन जाता है। किसान बतला सकेगा कि बीज कैसे बोया जाता है। उसे अपने आसपासके हर गली-कूचेका ज्ञान है, मनष्योंकी जानकारी है, सितारे आदि देखकर वह रातको भी दिशाएँ पहचान सकता है, पक्षियोंकी आवाज और उनकी गतिके आधारपर वह बहुत-कुछ जान जाता है। यदि अमुक पक्षी किसी विशेष समयपर एक-साथ दिखाई दें और किल्लोल करें, तो किसान कह सकेगा कि यह बरसात अथवा अन्य किसी मौसमके आगमनकी निशानी है। इस प्रकार किसानको अपने लिए आवश्यक खगोल, भूगोल और भूगर्भ आदि शास्त्रोंका ज्ञान होता है। उसे अपने बच्चोंका पोषण करना है, अतः मानव-धर्मशास्त्रका भी उसे साधारण ज्ञान है। और चूंकि वह प्राय: पृथ्वीके विशाल खुले खण्डमें रहता है, इसलिए ईश्वरके महत्त्वका भी अनुभव' सहज ही कर पाता है। शरीरसे तो वह सबल है ही। वह अपना वैद्य भी आप ही होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि उसका मन भी ठीक तरहसे सुशिक्षित है।

परन्तु यह सम्भव नहीं कि सभी किसान हों। फिर ये प्रकरण कुछ किसानके उपयोगके लिए नहीं लिखे जा रहे हैं। प्रश्न यह है कि जो लोग व्यापारी है अथवा इस प्रकारका अन्य कोई धन्धा करते हैं, उन्हें क्या करना चाहिए। इस प्रश्नका हमें विवेकपूर्ण जवाब मिल सके, और किसानकी जीवनचर्यासे हम, जो कि किसान नहीं हैं, अपनी जीवनचर्याकी तुलना कर सकें और जान सके कि जिस हद तक हम लोग एक कृषकका जीवन नहीं बिता पाते, उस हद तक हम लोग उसकी अपेक्षा कम ही नीरोग रहेंगे । इसीलिए किसानकी जीवनीका थोड़ा-कुछ वर्णन यहाँ कर दिया गया है। एक किसानके जीवनके आधारपर हम देख सकते हैं कि मनुष्यको ८ घंटे शारीरिक काम करना चाहिए और वह कार्य ऐसा हो, जिसे करते हुए हमारी मन:-शक्तिको भी व्यायाम मिलता रहे। यह ठीक है कि व्यापारी आदि वर्गोंको भी कुछ हद तक मनका व्यायाम मिलता है, परन्तु वह एकांगी ही होता है। व्यापारी किसानकी तरह खगोल, भूगोल या इतिहास जाननेवाला नहीं होता। उसे तो केवल भाव-तावकी ही खबर होती है। प्रतिपक्षीको दक्षतापूर्वक किस प्रकार माल बेचा जाये,इसकी उसे जानकारी है। लेकिन इतने-भरसे उसकी मनःशक्तिको पूरा व्यायाम नहीं मिलता। अवश्य ही उसे अपने धन्धेमें कुछ शारीरिक हलचल करनी पड़ती है, पर वह भी अपर्याप्त ही मानी जायेगी।

इस प्रकारके मनुष्योंके लिए पश्चिमी लोगोंने क्रिकेट आदि खेल खेलनेकी सिफारिश की है; वर्षके त्योहारोंको मनाते समय अमुक त्योहारोंपर अमुक प्रकारके खेल और अपने मानसिक विकासके लिए जिन पुस्तकोंमें अधिक मगजपच्ची न करनी पड़े, ऐसी पुस्तकें पढ़नकी पद्धति चलाई है। यह एक मार्ग है। इसपर जरा विचार कर लें। इसमें कोई शक नहीं कि इस प्रकारके खेलोंमें समय बिताते हुए अवश्य ही व्यायाम मिलता है, पर इनसे मनुष्यका मन नहीं सुधर सकता। यह बात अनेक उदाहरण देकर समझाई जा सकती है। क्रिकेट खेलनेवालों अथवा फुटबॉलके अच्छे खिलाड़ियोंकी संख्याको देखें तो उनमें कितने ऐसे मिलेंगे जिनकी मानसिक शक्ति अच्छी है? हिन्दुस्तानमें