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३८८. पत्र : भारत-उपमन्त्रीको

[ लन्दन ]

अगस्त १४, १९१४

सेवामें

भारत-उपमन्त्री

[ महोदय, ]

हम लोगोंमें से बहुतोंने यह उपयुक्त समझा कि साम्राज्यपर जो संकट छा गया है उसके दौरान -- जब अनेकों अंग्रेज अपने जीवनका सामान्य धन्धा त्याग कर साम्राज्यकी पुकारपर आगे बढ़ रहे हैं, तो जो भारतीय साम्राज्यमें रह रहे हैं उन्हें चाहिए कि वे जो कुछ कर सकते हों उस कामके लिए अपने आपको बिना किसी शर्तके अधिकारियोंके हाथमें सौंप दें ।

अधिवासी भारतीय जनताको भावनाको निश्चित रूपसे जाननेके लिए हस्ताक्षर- कर्तानि एक कानूनी पत्र उन भारतीयोंके पास भेजा जिन्हें वह ३० घंटेके अन्दर, जो समय संगठनकर्ताओंने स्वयं निर्धारित किया था, पहुँच सकता था। प्रतिक्रिया शीघ्र और पर्याप्त हुई है तथा हस्ताक्षरकर्ताकी रायमें वह महामहिमके भारतीय साम्राज्यके उन प्रजाजनोंका प्रतिनिधित्व करती है जो इस समय संयुक्त साम्राज्यके विभिन्न भागों में रह रहे हैं।

अपने लोगोंकी ओरसे और उन लोगोंकी ओरसे जिनके नाम संलग्न सूचीमें दिये हैं, हम अपनी सेवाएँ अधिकारियोंको सादर समर्पित करते हैं और यह विश्वास करते हैं कि परम माननीय मारक्वेस ऑफ क्रू हमारी सेवाएँ स्वीकार करेंगे तथा उपयुक्त अधिकारीसे इसकी स्वीकृति दिला देंगे। हम सादर इस तथ्यपर जोर देंगे कि जो सर्वोपरि विचार हमें प्रेरित कर रहा है यह है कि जिस थोड़ी बहुत मददके लायक समझे जायें वह कर सकें; चूँकि हम इस महान् साम्राज्यकी सदस्यताके लाभ भी उठाते हैं, हमारी हार्दिक इच्छा है कि हम इसके उत्तरदायित्वोंमें हिस्सा बँटायें ।

हम यह भी कह देना चाहते हैं कि जिनके नाम इस पत्रके साथ भेजे जा रहे हैं, उनमें से कुछ तो पहले से सरकारकी मददमें लगी हुई कतिपय संस्थाओंके साथ काम कर रहे हैं। हमें जरा भी सन्देह नहीं है कि यदि हमारा तुच्छ निवेदन स्वीकार हो जाता है तो भारतीय समाज में इस खबरके फैलते ही और भी बहुतसे स्वयंसेवक आगे आयेंगे ।

मो० क० गांधी

और अन्य लोग

[ अंग्रजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १६-९-१९१४

१. देखिए पिछला शीर्षक ।

२. भारत उपमन्त्री, चार्ल्स रॉबसने इस पत्रका उत्तर दिया और सरकारकी स्वीकृति व्यक्त की। देखिए परिशिष्ट २९ ।