पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/५५५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५१५
भाषण: लन्दनके स्वागत समारोहमें

हरबतसिंह नामका एक ७५ वर्षीय गिरमिटिया मजदूर फोक्सरस्ट जेलमें मेरे साथ था। उसे आप क्या कहेंगे ? उसका क़द पूरे छः फीटका था और उसका शरीर भव्य था । उससे मैंने पूछा, 'आप क्यों आ गये ?" उसने जवाब दिया, "मैं आये बिना कैसे रह सकता था? अपने भाइयोंको छुड़ानेके लिए मेरी उम्रके आखिरी दिन जेल में बीत जायें तो मेरी आत्माको बड़ी तसल्ली होगी।" यही हुआ। वह जेलमें ही मर गया।

नौजवान नारायणसामीके बारेमें आपका क्या खयाल है? उसके माता-पिता मद्रास प्रान्तसे आये थे, जिसे लोग भ्रमवश अज्ञानके अंधकारसे विजड़ित प्रान्त मानते हैं । निर्वासित होने से पूर्व नारायणसामीने भारत देखा भी नहीं था। उसे कुछ दिन भूखा रहना पड़ा और इसके बाद उसका देहान्त हो गया।

इसी तरह मद्रासका एक लड़का था जिसका नाम नागप्पन था । वह भी जेल गया था। एक कैदीके रूप में आफ्रिकाके एक मैदान में जाड़ेकी कड़कड़ाती सर्दी में कई दिन तक उसने सूर्योदयसे पहले उठकर काम किया। आपको लन्दनके जाड़ेका तो अनुभव है, परन्तु सूर्योदयके पहले आफ्रिकाके मैदानों में जैसी कड़कड़ाती हुई सरदी पड़ती है उसकी कल्पना आपको शायद ही होगी। काम करनेकी शक्ति नहीं होने पर भी वह वहाँ काम करता रहा, और अन्त में मर गया।

फिर एक अठारह वर्षकी लड़की थी -- बहन वलिअम्मा । वह जेल गई और वहाँसे जब छोड़ी गई तब वह मौतके दरवाजे तक पहुँच गई थी। जब श्री पोलक और मैं उसे देखने गये थे तबकी बात मुझे अच्छी तरह याद है। बड़ी सावधानीके साथ हमने उसे उठा कर दरीपर लिटाया और अपने बस-भर उसकी सुश्रूषा की । परन्तु दक्षिण आफ्रिकाके अपने हजारों भारतीयोंको रोता छोड़कर वह भी चल बसी ।

उधर मजदूरोंके कानोंपर भनक आई कि कहीं कोई गड़बड़ी है। बस, इतने पर २०,००० मजदूर अपने औजारोंको फेंककर, काम छोड़कर बाहर निकल आये । इस कथनमें, लोगोंने कहा कि वे जानते ही नहीं कि उन्होंने हड़ताल क्यों कर दी है, सत्यका कुछ अंश था । वे विश्वासके वश होकर बाहर आए । हिंसाका कहीं नामोनिशान नहीं था। ये पुरुष और स्त्रियाँ भारतके रत्न हैं। इन्हींके बलपर नये भारतीय राष्ट्रका निर्माण होनेवाला है। इन वीरों और वीरांगनाओंकी तुलनामें हम तो तुच्छ मानव हैं।

परन्तु विजय केवल इनकी बहादुरीके कारण भी नहीं मिली है। निश्चय ही उन्होंने दक्षिण आफ्रिका और साम्राज्यकी सदसद्-विवेकबुद्धिको जगा दिया। अपने पुत्र और पुत्रियोंकी परीक्षाकी घड़ीमें साधुमना राजनयिक श्री गोपाल कृष्ण गोखलेके नेतृत्व में मातृभूमिसे भी जो मदद आई उसको भी इस सफलताका श्रेय है। भारतने इस समय जो रुख दिखाया और महान वाइसराय लॉर्ड हार्डिजने जो सामयिक कदम उठाये, विजयमें उनका भी हाथ रहा है। परन्तु इन सबके बावजद अगर दक्षिण आफ्रिकाकी विवेक बुद्धि नहीं जागी होती, पशुबलके मुकाबले में भारतीयोंने जिस नैतिक शक्तिसे काम लिया उसे अगर वहाँके लोगोंने समझा नहीं होता, तो विजय असम्भव थी ।