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३८५. भाषण : लन्दनके स्वागत-समारोहमें'

अगस्त ८, १९१४

श्री बसु, मैं आपसे और श्रीमती सरोजिनी नायडूसे तो केवल इतना ही कह सकता हूँ कि आप दोनोंने अपने प्रेमसे मुझे अभिभूत कर दिया है। मैं जो कुछ कहना चाहता हूँ वह मैं कह भी सकूँगा या नहीं सो मैं नहीं जानता। साम्राज्यके ऊपर जो महान् संकट छाया हुआ है, उसका मैं अत्यन्त संक्षेपमें उल्लेखमात्र करूंगा। जब से हम लोग इंग्लैंड पहुँचे और हमने [ युद्ध छिड़नेका] समाचार सुना है, मैं उसके में बराबर पढ़ता और सोचता रहा हूँ। मुझे उन पतियों और बेटोंका खयाल आ रहा है, जो लड़ाईपर गये हैं और उन माताओं, पत्नियों और बहनोंका भी खयाल आ रहा है जिन्हें वे बिलखता छोड़ गये हैं। मैं अपने-आपसे पूछ रहा हूँ : 'इस समय मेरा कर्तव्य क्या है ? २१ वर्षसे मैं अपनी मातृभूमिसे बिछुड़ा हुआ हूँ।मेरे मित्रोंका कहना है कि मैंने भारतकी एक काल्पनिक तस्वीर अपने मनमें बना ली है। इसलिए मैं अपनी कल्पनाके भारतके प्रतिनिधिके रूपमें नहीं बोल सकता । अगर मैं दक्षिण आफ्रिकामें होता तो जरूर मैं अपने देशभाइयोंके प्रतिनिधिके रूपमें कुछ कह सकता था। अभी मैं किसी नतीजेपर नहीं पहुँचा हूँ। परन्तु मुझे विश्वास है कि हम कुछ ठोस काम कर सकते हैं। मैं आशा करता हूँ कि आपमें से जो लोग मेरी उम्रके हैं और जो मेरी तरह विद्यार्थी हैं। - मैं अभी विद्यार्थी ही हूँ - वे सोचेंगे कि इस समय क्या किया जा सकता है। वे अपने गुरुजनोंकी भी सलाह लेंगे और यदि वह उनकी सदसद्-विवेक बुद्धिको पसन्द हो तो उसपर अमल भी करेंगे ।

श्रीमती गांधीके और मेरे दिलमें आप सबके प्रति जो कृतज्ञता उमड़ रही है उसे शब्दों में प्रकट करना असम्भव है। आपके बीच हम लगभग "जंगली" हैं। शहरों- से दूर एक छोटेसे खेतपर हम रहे हैं। इसीलिए तो मैंने कहा कि हम जंगली " हैं। प्रसिद्धिके प्रकाश में हमने जो कुछ थोड़ा-सा काम किया वह आपके सामने बढ़े-चढ़े रूपमें पेश हुआ है। अगर आपकी नजरोंमें हम लोग प्रशंसाके पात्र बन गये तो उन लोगोंकी कितनी प्रशंसा होनी चाहिए जो हमारे पीछे रहे हैं, जिन्होंने सरल श्रद्धाके साथ संघर्ष किया है और जिन्होंने सराहे जानेकी बात कभी सोची तक नहीं ।

१. अगस्त ४ को गांधीजी, कस्तूरबा और कैलेनबैकके इंग्लैंड पहुँचनेपर उनके अंग्रेज और भारतीय मित्रोंने होटल सेसिलमें एक स्वागत समारोह आयोजित किया। इस अवसर पर अन्य लोगोंके अतिरिक्त श्रीमती सरोजिनी नायडू, श्री सच्चिदानन्द सिन्हा, लाला लाजपतराय, श्री जिन्ना, श्रीमती वाईवर्ग और श्री अल्बर्ट कार्टराइट उपस्थित थे । माननीय श्री भूपेन्द्रनाथ बसुने अध्यक्षता की । श्रीमती सरोजिनी नायडूने प्रमुख अतिथियोंको मालाएँ पहनाई और अपने भाषण में गांधीजीके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की ।

२. अभिप्राय प्रथम महायुद्धसे है जो इस समय छिड़ चुका था।