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पत्र : छगनलाल गांधीको

है -- इसी प्रकार विजय प्राप्त रहना। तुम और भाई प्रा. करते जाना। अपनी रहनीसे मुझे वाकिफ करते दोनों सगे भाइयोंकी तरह रहना । खेती में मन लगाना । सारे फीनिक्समें सुवास फैलाकर उसे एक धर्मक्षेत्र बना देना । जहाँतक बने मौन धारण करना ।

तमिलका अध्ययन न छोड़ना । मुतु आदिके साथ बोलनेका अभ्यास रखना।

मोहनदास के आशीर्वाद

[ गुजराती से ]

गांधीजीनी साधना

३८४. पत्र : छगनलाल गांधीको

६०, टालबोट रोड,

बेज़वाटर डब्ल्यू ०,

[ लन्दन ]

अगस्त ७, १९१४

प्रिय छगनलाल,

मैं अपनी बाईं टाँगकी पुरानी पीड़ासे इस समय बिस्तरपर पड़ा हुआ हूँ और इसलिए तुम्हें गुजराती में नहीं लिख सकूँगा। मैं बोल रहा हूँ और मेरी तरफसे कुमारी पोलक पत्र लिख रही हैं। इस पत्रके साथ पोलकको लिखे मेरे पत्रकी' नकल है, जिससे तुम्हें यहाँको परिस्थितियों के बारेमें सारी जानकारी मिलेगी। मैं तुम्हें गुजराती लेखका शेषांश नहीं भेज रहा हूँ, क्योंकि मुझे उसके खो जानेका भय है। मैं देखूंगा कि अगले सप्ताह हालात कैसे रहते हैं।

छगनलाल गांधी फीनिक्स (नेटाल) दक्षिण आफ्रिका

फीनिक्समें सबको मेरी याद दिला देना । साथमें भेजी जा रही पत्रकी नकलसे तुम्हें मालूम हो जायेगा कि मैं इस हफ्ते अपने पत्र क्यों नहीं लिख रहा हूँ। मेरी टाँगकी पीड़ाके विषय में चिन्ताका कोई कारण नहीं है। यह कलके अधिक परिश्रम के कारण है। मैं अभी लम्बे उपवासके प्रभावसे मुक्त नहीं हो पाया हूँ।

मोहनदासके आशीर्वाद

छगनलाल गांधी

फीनिक्स (नेटाल)

दक्षिण आफ्रिका

गांधीजीके गुजराती हस्ताक्षरसे युक्त मूल अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ६०४०) की फोटो-नकलसे। सौजन्य : छगनलाल गांधी ।

१. यह उपलब्ध नहीं है ।

२. सम्बद्ध लेखके लिए देखिए पृष्ठ ४९९-५१० ।

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