पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/५५०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५१०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चार विशेष ट्रेनों में भरकर डंडी तथा न्यूकैसिल में वापिस खानोंपर ले जाया गया । वहाँ उनपर बड़ा अत्याचार हुआ। उन्हें बहुत कष्ट सहना पड़ा । लेकिन कष्ट सहन करनेके लिए तो वे सब निकले ही थे। सच तो यह है कि सब अपने नेता खुद ही थे । जिन्हें नेता कहा जाता था उनकी गैरहाजिरीमें अब उन्हें अपना बल बताना था और वह उन्होंने बता दिया। कैसे बताया, यह तो सारी दुनिया जानती है।

कवि दयारामने ठीक कहा है कि : महान् कष्ट सहे बिना कृष्णको किसने पाया? चारों युगोंके साधुओंका जीवन देखो। वैष्णवके लिए प्रीति किसी बिरलेको ही होती है। भक्तिके विरोधी लोग तो इन्हें पीड़ा ही देते हैं।

ध्रुव, प्रह्लाद, भीष्म, बलि, विभीषण, विदुर, कुन्ती और उनके पुत्र - - सबको दुःख भोगना पड़ा;

बसुमति, देवकी, नन्दजी, यशोदामाता, और ब्रजका सारा भक्त-मण्डल, सब दुःखी रहे

--भक्तिमें ही उनका सुख था । नल, दमयंती, हरिश्चन्द्र, तारामती, रुक्मांगद, अम्बरीष और अन्य अनेक कष्टसे कोई बचा नहीं; नरसिंह मेहता, जयदेव और मीरा

--पहले तो सबको दुःखकी आग में तपना पड़ा, सुखकी वृष्टि तो बादमें हुई।

व्यास भो आधि-व्याधिके शिकार हुए; इसी प्रकार तुलसी और माधवादि; शिवकी कपाली विद्याके लिए सारा विश्व उनकी निंदा करता है; जगज्जननी जानकीको दुस्तर दुःख सहना पड़ा, पापका लेश भी जिन्हें छू नहीं गया उन्हें भी ताप !

उन्हें जिनकी सारा जगत् वन्द करता है। प्राक्तन कर्मोंसे फलित प्रारब्ध जिन्हें नहीं होता,

उन्हें भी त्रिविध ताप सताते हैं।

ईश्वरकी गति अज्ञेय है; उसका हेतु समझ में नहीं आता,

उसकी इच्छा प्रबल है; सब उसके अधीन है।

पाप और पुण्य तो कहनेकी बातें हैं ।

असल में नन्दकुँवरका नचाया यह सारा जगत नाचता है।

प्रभु इच्छाके बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता ।

परन्तु हमारे इस अज्ञ मनका भ्रम दूर नहीं होता ।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, स्वर्ण अंक, १९१४

[ जहाज़से ]

१. गुजरात के एक प्रसिद्ध वैष्णव कवि (१७७७-१८५३), जिन्होंने अनेक गीत लिखे हैं।