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अन्तिम सत्याग्रह संघर्ष: मेरे अनुभव

दूसरे दिन पामफर्ड में पुलिसने मुझे पकड़ा। मेरे ऊपर, जिन्हें हक नहीं था ऐसे लोगोंको ट्रान्सवालमें दाखिल करनेका, आरोप था। दूसरोंको पकड़नेका उसे हुक्म नहीं था, इसलिए फोक्सरस्ट पहुँचने के बाद सरकारको मैंने नीचे लिखे अनुसार तार किया।

जुलूस आगे बढ़ा। मुझे फोक्सरस्टके न्यायाधीशके सामने पेश किया गया। मुझे अपना बचाव तो कुछ करना नहीं था। लेकिन जो लोग पामफर्डसे आगे गये थे तथा जो अभी चार्ल्सटाउनमें पड़े हुए थे, उनकी कुछ व्यवस्था करनी थी। इसलिए मैंने समय माँगा । सरकारी वकीलने उसका विरोध किया। परन्तु न्यायाधीशने कहा कि बेल (जमानत) सिर्फ खूनके ही आरोपमें नामंजूर की जा सकती है। इसलिए उसने ५० पौंडकी जमानत मांगकर एक हफ्तेका समय दिया। जमानत फोक्सरस्टके एक व्यापारीने तुरन्त ही दे दी। मैं छूटकर सीधा कूच करनेवालोंसे जा मिला । उनका उत्साह दुगना बढ़ गया। इस बीच प्रिटोरियासे तार आ गया कि मेरे साथके भारतीयोंको पकड़ने का सरकारका इरादा नहीं है। सिर्फ नेताओंको ही पकड़ा जायेगा। इसका अर्थ यह नहीं था कि बाकी सबको छूट दी जायेगी। लेकिन सबको पकड़कर सरकार हमारा काम आसान नहीं करना चाहती थी और न यही चाहती थी कि भारत में खलबली मच जाये ।

पीछेसे एक दूसरी बड़ी टुकड़ी लेकर श्री कैलेनबैक आ रहे थे। हमारी दो हजारसे भी ज्यादा लोगोंकी टुकड़ी स्टैण्डर्टन पहुँची। वहाँ मुझे फिर गिरफ्तार किया गया । मुकदमेकी पेशी ता० २१ की पड़ी । हम और आगे बढ़े। लेकिन सरकार यह सब अब ज्यादा दिन नहीं सह सकती थी, इसलिए उसने पहले तो मुझे इन सबसे जुदा करनेका कदम उठाया । इस समय श्री पोलकको शिष्टमण्डलके रूपमें हिन्दुस्तान भेजनेकी तैयारी हो रही थी। रवाना होनेके पहले वे मुझसे मिलनेके लिए आये। लेकिन 'मेरे मन कछु और है, विधनाके कछु और'। रविवार के दिन मझे फिर तीसरी बार प्रेलिंगस्टाडमें पकड़ा गया। इस बारका वारंट डंडीसे निकाला गया था और आरोप गिरमिटियोंको काम छोड़नेके लिए उकसानेका था । यहाँसे मुझे बिलकुल चुपचाप डंडी ले जाया गया । ऊपर मैं कह चुका हूँ कि श्री पोलक हमारे साथ कूचमें थे। उन्होंने मेरा काम संभाल लिया। डंडी में मंगलवारको केस चला। मेरे ऊपर लगाये गये तीनों आरोप मुझे पढ़कर सुनाये गये। मैंने उन्हें स्वीकार किया और अदालतकी अनुमति लेकर कहा ।

मैं तो जेलमें निश्चिन्ततासे बैठ गया। बादमें मेरे ऊपर फोक्सरस्टमें मुकदमा चला और डंडी में हुई नौ माहकी सजाके सिवा तीन माहकी सजा वहाँ और हुई।

इसी समय मुझे खबर मिली कि श्री पोलक पकड़े गये हैं और हिन्दुस्तान जानेके बजाय जेलमें जाकर बैठे हैं। मैं तो खुश ही हुआ, क्योंकि मेरी दृष्टिमें तो पहले शिष्ट- मण्डलसे इस शिष्टमण्डलका महत्व ज्यादा था। उसके बाद शीघ्र ही श्री कैलेनबँक पकड़े गये और वे भी श्री पोलककी तरह तीन माहके लिए जेलमें जा बैठे। नेताओंके पकड़े जानेपर लोग झुक जायेंगे, ऐसा माननेमें सरकारने भूल ही की। सब हड़तालियोंको

१. देखिए " तार : गृह-मन्त्रीको ", पृष्ठ २५२-५३ ।

२. यहाँ नहीं दिया गया। बथानके लिए देखिए "डंडीमें मुकदमा ", पृष्ठ २५५-५७ ।