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अन्तिम सत्याग्रह संघर्ष: मेरे अनुभव

६. सरकारी पुलिस पकड़नेके लिए आये तो खुशीसे गिरफ्तार हो जायेंगे।

७. पुलिसके अथवा किसीके भी सामने झुकेंगे नहीं; मार पड़े तो उसे सहन करेंगे, मारका जवाब मारसे देकर अपना बचाव नहीं करेंगे।

८. जेलमें जो दुःख सहना पड़े, उसे सहेंगे और जेलको महल समझकर अपने दिन बितायेंगे।

इस टुकड़ीमें सब वर्णोंके लोग थे । हिन्दू, मुसलमान, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र थे। कलकतिया थे और तमिल थे। कुछ पठानों और उत्तरकी ओरके सिंधियोंको मार खाकर भी अपना बचाव न करनेकी शर्त बहुत कठिन मालूम हुई। लेकिन उन्होंने वह शर्त खुशीसे स्वीकार की। इतना ही नहीं, पर जब उनकी कसौटीका समय आया, तब उन्होंने इस शर्तका पालन किया और अपना बचाव नहीं किया।

ऐसी परिस्थितियों में पहली टुकड़ीकी कूच शुरू हुई। पहली रातको ही एक वीरान प्रदेशमें घासपर सोनेका प्रसंग आया। रास्ते में लगभग १५० मनुष्यों के नाम वारंट मिले। वे लोग खुशीसे गिरफ्तार हो गये। पकड़नेके लिए केवल एक पुलिस अधिकारी आया था। उसके साथ उसकी मददके लिए और कोई नहीं था। जो लोग पकड़े गये उन्हें कैसे ले जाना, यह एक सवाल था । हम चार्ल्स टाउनसे सिर्फ छ : मील दूर थे। इस- लिए मैंने उस अधिकारीसे कहा कि जिन्हें गिरफ्तार किया गया है वे अभी मेरे ही साथ कूच करें और उनका कब्जा वह चार्ल्स टाउनमें ले अथवा अपने ऊपरी अधिकारीसे पूछकर उसे जैसा हुक्म मिले वैसा करे। अधिकारीने यह बात स्वीकार की और वह चला गया। हम लोग चार्ल्सटाउन पहुँचे। चार्ल्स टाउन बहुत छोटा गाँव है। उसकी आबादी मुश्किलसे १,००० आदमियोंकी होगी। उसमें एक ही मुख्य रास्ता है। हिन्दुस्तानियोंकी संख्या बहुत थोड़ी है। इसलिए हमारी टुकड़ी देखकर गोरोंको आश्चर्य हुआ। चार्ल्स टाउनमें इतने हिन्दुस्तानी पहले कभी गये ही नहीं थे। गिरफ्तार किये गये लोगोंको न्यूकैसिल ले जानेके लिए रेलगाड़ी तैयार नहीं थी। पुलिस उन्हें कहाँ रखे ? चार्ल्सटाउनके थाने में इतने कैदियोंको रखनेके लिए जगह नहीं थी। इसलिए पुलिसने पकड़े हुए लोगोंको मुझे सौंपा और उनकी खुराकका बिल चुकाना स्वीकार किया। इसे सत्याग्रहका काफी अच्छा सम्मान माना जा सकता है। साधारणतः हमारे पाससे ही पकड़े हुए कैदी हमें नहीं सौंपे जा सकते। उनमें से कोई चला जाये तो जिम्मेदारी हमारी नहीं थी। लेकिन सत्याग्रहीका तो काम ही गिरफ्तार होनेका है, ऐसा सब समझने लगे थे। इसलिए विश्वास बैठ गया। इस तरह चार दिन तक पुलिसके गिरफ्तार किये हुए आदमी हमारे ही साथ रहे। जब उन्हें ले जानेके लिए पुलिस तैयार हो गई, तब वे खुशीसे उसके अधीन हो गये।

टुकड़ियोंकी भरती जारी रही। किसी दिन चार सौ तो किसी दिन उससे भी ज्यादा । अधिकांश पुरुष पैदल चलते थे और स्त्रियां मुख्यतः गाड़ीसे आती थीं। चार्ल्सटाउनके हिन्दुस्तानी व्यापारियोंके घरमें जहाँ भी जगह मिली वहां उन्हें ठहरानेकी व्यवस्था की गई। वहाँकी कारपोरेशनने भी अपने मकान दिये। गोरे हमें किसी भी तरह हैरान नहीं करते । इतना ही नहीं, वे मदद भी करते थे। वहाँके डॉक्टर ब्रिस्कोने हमारे बीमारोंकी सेवा-