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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

उन्होंने कुछ दिन जैसी भी सुविधा असुविधा उन्हें मिली उसे सहते हुए फीनिखनमें बिताये। वहीं उन्होंने टोकरियाँ लेकर फेरी की और इस तरह पकड़े जानेका प्रयत्न किया, किन्तु किसीने उन्हें पकड़ा नहीं ।

इस निराशामें अमर आशा छिपी हुई थी। यदि स्त्रियोंको सरकारने फ्रीनिखनमें ही पकड़ा होता, तो शायद हड़ताल न हुई होती, इतना तो निश्चित है कि हड़ताल जिस पैमानेपर हुई उस पैमानेपर वह कभी न हुई होती। लेकिन समाजपर ईश्वरका हाथ था; वह हमेशा सत्यका रक्षक है। स्त्रियाँ पकड़ी नहीं गईं, इसलिए ऐसा निर्णय हुआ कि वे नेटालकी हदका उल्लंघन करें। अगर फिर भी न पकड़ी जायें तो वे भी थम्बी नायडूके साथ न्यू कैसिलमें छावनी डालें। वे नेटालकी ओर रवाना हुईं। सीमापर पुलिसने उन्हें पकड़ा नहीं। अतः उन्होंने न्यू कैंसिलमें पड़ाव डाला। वहाँ श्री डी० लाजरसने अपना घर स्त्रियोंको सौंप दिया और पत्नी तथा साली कुमारी टॉमसने इन सत्याग्रही स्त्रियोंकी सेवा-सहायता आदि करनेका काम अपने ऊपर उठा लिया ।

योजना यह थी कि स्त्रियाँ न्यू कैंसिलमें गिरमिटियोंकी स्त्रियोंसे और गिरमिटियोंसे मिलेंगी। उन्हें उनकी दशाका भान करायेंगी और तीन पौंडी करके सवालपर हड़ताल करनेके लिए समझायेंगी। बादमें जब मैं न्यू कैंसिल पहुँचूँ तब यह हड़ताल की जाये। लेकिन स्त्रियोंकी उपस्थिति तो सूखी लकड़ीमें आगकी चिनगारी लगने-जैसी सिद्ध हुई । कोमल शय्याके बिना न सोनेवाली और कदाचित् ही मुँह खोलनेवाली इन स्त्रियोंने गिरमिटिया लोगों में खुले आम व्याख्यान दिये। वे जागे और उन्होंने मेरे पहुँचनके पहले ही हड़ताल करनेका आग्रह किया । काम बहुत जोखिमवाला था । मुझे श्री नायडूका तार मिला कि कैलनबैक न्यूकैंसिल गये और हड़ताल शुरू हुई। मैं न्यूकैसिल पहुँचा उस बीच तो कोयले की दो खानोंमें भारतीयोंने काम बन्द कर दिया था।

श्री हॉस्केनकी अध्यक्षता में संगठित यूरोपीय सहायक समितिने मुझे बुलाया। मैं उनसे मिला। उन्हें हमारा आन्दोलन पसन्द आया और उन्होंने उसे प्रोत्साहन देनेका प्रस्ताव किया। मैं एक दिन जोहानिसबर्ग में रुक कर न्यूकैंसिल पहुँचा और वहाँ रहा। मैंने देखा कि लोगों में उत्साहका पार नहीं है। सरकार स्त्रियोंकी उपस्थितिको सहन न कर सकी और अन्त में ऐसा आरोप लगाकर कि वे यों ही भटकती फिरती हैं उसने उन्हें जेलमें भेज दिया। श्री लाजरसका घर अब सत्याग्रहकी धर्मशाला बन गया। वहाँ सैकड़ों गिरमिटियोंके लिए खाना पकानेकी व्यवस्था करनी पड़ी। उससे भी श्री लाजरस घबड़ाये नहीं। न्यूकैसिलके भारतीयोंने एक समिति नियुक्त की । श्री सीदत उसके प्रमुख चुने गये । काम खूब तेजीसे, दिन दूना और रात चौगुना चला। दूसरी खानोंके भारतीय मजदूरोंने भी काम बन्द कर दिया ।

खानोंके भारतीय मजदूर इस तरह काम बन्द करन लगे, इसलिए कोयलेकी खानोंके मालिकोंकी सभा हुई। मुझे उसमें बुलाया गया। वहाँ बातचीत तो बहुत हुई, पर कोई निष्कर्ष नहीं निकला। उनका कहना यह था कि यदि हम हड़ताल बन्द रखें तो वे सरकारको तीन पौंडी करके बारेमें लिखेंगे। सत्याग्रही इस शर्तको स्वीकार नहीं कर

१. देखिए " वक्तव्य : वाणिज्य मण्डलमें ", पृष्ठ २४४ ।