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अन्तिम सत्याग्रह संघर्ष : मेरे अनुभव

अब वे लड़ाईमें शामिल नहीं होंगे। ऐसा कहनेवाले लोग रुस्तमजीकी महानताको पहचानते नहीं थे। स्त्रियाँ और बालक जायें और वे घर बैठे रहें, यह स्थिति उनके लिए असह्य थी। इसी समयके दो और प्रसंग मुझे याद आते हैं। श्री रुस्तमजी और उनके सिंह जैसे बालक सोराबजी में प्रतिस्पर्धा चली। सोराबजी कहते थे कि "बाबाजी, मुझे जाना है; या तो अपने बदले मुझे जाने दो या मुझे भी साथ ले चलो। "

दूसरा दृश्य जो मुझे याद आता है वह स्वर्गीय हुसैन मियाँके साथ श्री रुस्तमजीके मिलनका है। जब श्री रुस्तमजी उनसे मिलने गये तब उनकी आँखोंसे आँसुओंकी धारा बह निकली और उन्होंने कहा, "काकाजी, यदि मैं स्वस्थ होता, तो मैं भी आपके साथ जेल चलता।” भाई हुसैनका देश-प्रेम बहुत जबरदस्त था। उन्होंने रोगशय्यापर पड़े-पड़े लड़ाईको अपने समर्थनका बल दिया; उनसे जो कोई भी मिलता उससे वे लड़ाईकी ही चर्चा करते थे ।

फीनिक्समें जो लोग रह गये, उनमें सोलह वर्षसे कम उम्रके बालक भी थे। उन लोगोंने और आश्रमके व्यवस्थापकोंने जेलके बाहर होते हुए भी जेलमें जानेवालोंकी अपेक्षा ज्यादा काम कर दिखाया। उन लोगोंने काममें रात-दिनका भेद मिटा दिया। अपने साथी और बुजुर्ग जबतक जेलसे न छूटें तबतकके लिए उन्होंने कठोर व्रत लिये, अलोना आहार खाकर रहे, और जोखिमके काम भी बिना किसी डरके उन्होंने अपने सिरपर लिये। जिस समय विक्टोरिया काउन्टीमें हड़ताल हुई उस समय सैकड़ों गिर- मिटियोंन फीनिक्समें आश्रय लिया। उस समय उन्हें सम्भालना और उनकी व्यवस्था करना एक महान् कार्य था । इन गिरमिटियोंके मालिकोंकी तरफसे हमला होनेका डर होते हुए भी अपना कार्य निडरतासे करते जाना उनकी दूसरी सफलता थी । वहाँ पुलिस पहुँची, श्री वेस्टको पकड़कर ले गई; ऐसी सम्भावना थी कि दूसरोंको भी पकड़ कर ले जायेगी - इन सब आपत्तियोंके मुकाबलेके लिए वे तैयार रहे। लेकिन एक भी आदमी फीनिक्ससे हटा नहीं। मैं ऊपर कह चुका हूँ कि इसमें सिर्फ एक ही कुटुम्ब अपवादरूप रहा। फीनिक्सके व्यवस्थापकोंने इस अवसरपर समाजकी जो सेवा की है, हिन्दुस्तानी समाज उसका हिसाब कभी नहीं लगा सकता। यह अप्रकट इतिहास अभी लिखा नहीं गया है, इसलिए उसका कुछ अंश मैं यहाँ दे रहा हूँ। और वह इस आशासे दे रहा हूँ कि किसी दिन कोई जिज्ञासु ज्यादा जानकारी इकट्ठी करके फीनिक्सके व्यव- स्थापकोंके कार्यकी कीमत कुछ अंशम आँक सके। मैं तो ज्यादा लिखनेके लिए ललचा रहा हूँ, लेकिन इस लोभका संयम करके फीनिक्सकी बात यहीं समाप्त करता हूँ ।

फीनिक्सकी टुकड़ी जेल गई, इसलिए जोहानिसबर्गसे भी नहीं रहा गया । वहाँकी स्त्रियाँ अधीर हो गईं। उन्हें जेल जानेकी लगन लग गई। श्री थम्बी नायडूका सारा कुटुम्ब तैयार हो गया। उनकी स्त्री, साली, सास, श्री मुरगनके सगे-सम्बन्धी, श्रीमती पी० के० नायडू, अपना नाम अमर कर जानेवाली बहिन वलिअम्मा और कई दूसरी स्त्रियाँ तैयार हुईं। वे अपनी गोदमें बालक लेकर निकलीं। श्री कैलेनबैंक उन्हें लेकर फीनिखन गये। वहाँ जानेमें ऐसी उम्मीद थी कि फ्री स्टेटकी सरहदपर पहुँचनेके बाद वापिस आते समय पकड़ लिये जायेंगे। लेकिन उनकी यह उम्मीद पूरी नहीं हुई।