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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

इसमें नहीं होता। निरर्थक रूढ़ियोंका पालन भी नहीं करना पड़ता। असुविधाएँ भी यहाँ कुछ खास नहीं हैं। और गरीबीके जीवनमें जो सामान्य असुविधाएँ भोगनी पड़ती हैं वे अन्तम सुखद सिद्ध होती हैं। यह टीका करने में मेरा मतलब यह नहीं है कि हरएक भारतीयको तीसरे दर्जेमें ही यात्रा करना चाहिए। मुझे यह हमेशा लगा है कि जिनके पास पैसा है और जो पैसेवालोंके ही बीचमें रहना चाहते हैं उन्हें तो कर्त्तव्यके खातिर भी पहले दर्जेमें ही यात्रा करनी चाहिए। यदि वे ऐसा न करें तो हमारे ऊपर कंजूसीका आरोप लगाया जा सकता है। किन्तु यह तो निश्चित है कि विशेष सुखके लिए पहले दर्जेकी यात्रा करना पाप है। और मेरे जैसे व्यक्तियोंको जो सार्वजनिक पैसेपर मुसा- फिरी करते हैं और जिनकी यात्राके ढंगका उनके समाजकी प्रतिष्ठासे कोई सम्बन्ध नहीं है उन्हें तो अवश्य तीसरे दर्जेमें ही, बल्कि उससे भी घटिया दर्जेमें-यदि वैसा कोई दर्जा हो तो - यात्रा करनी चाहिए।

हम तीनों लगभग फलाहारी हैं किन्तु कच्चे फलोंको हम पका लेते हैं और मूंगफली- जैसी चीजोंको उबाल लेते हैं। मेहनतका यह काम ज्यादातर श्री कैलेनबैक करते हैं। मेहनत-मजदूरीके कार्यको आजकल उन्होंने धर्म मान लिया है और उसमें वे आनन्दका अनुभव करते हैं। श्री कैलेनबैंक और मेरी धर्मपत्नीका यह पहला अनुभव है जब कि इन दोनोंको जहाजी बीमारी नहीं हुई। इस फर्कका कारण मेरा खयाल है, उनकी सादा रहन-सहन और उनका फलाहार है। फलाहार उत्तम खुराक है, इस बातका हम दिन-दिन विशेष अनुभव कर रहे हैं। दूसरे यात्रियोंके साथ हमारा मिलना-जुलना क्वचित् ही होता है। हमने अपने समयका ठीक-ठीक विभाजन कर लिया है और उसके अनुसार हम जिस समयके लिए जो कार्य नियत कर रखा है सो करते रहते हैं। इस तरह हमारा समय ठीक बीत रहा है।

अपने हजारों भारतीय भाइयोंकी प्रीति और उनके द्वारा अर्पित आदर-सत्कारका हमें सतत स्मरण रहता है। उनका यह प्रेम मुझे आत्माकी अद्भुत शक्तिका और उसके महान् गुणोंका भान कराता है। डर्बन, वेरुलम, जोहानिसबर्ग, किम्बलें और प्रिटोरियाके विदाई-समारम्भ भूलते ही नहीं। केप टाउनके भाइयोंने तो जुलूस निकालकर हमें अपने आभारके बोझसे बिलकुल विनत कर दिया है। जहाँ असंख्य लोगोंने अपार प्रेम प्रकट किया हो वहाँ किसका नाम लेकर धन्यवाद दिया जाये ? गोरी जनताने भी अपने प्रेमका सुन्दर प्रदर्शन किया। अन्तिम दिनोंमें उनके प्रेमका प्याला भी हमने भरपूर पिया। परिचित और अपरिचित, सब लोगोंने खूब प्रेम दिखाया। ऐसी घटनाओंसे सिद्ध होता है कि गोरों और कालोंके बीच कोई स्थायी भेद नहीं है और यदि दोनों पक्ष समुचित प्रयत्न करें तो दक्षिण आफ्रिका में प्रचलित यह बुराई दूर हो जाये । यदि प्रत्येक अवसर पर एक पक्ष भी हर तरहसे सत्याग्रहका अवलम्बन करता रहे तो एक पक्षके प्रयत्नसे भी रंगद्वेषकी यह बुराई दूर की जा सकती है, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास और अनुभव है। इतना प्रस्तावनाके रूपमें ।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, २६-८-१९१४