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१७. संघको उत्तर

जोहानिसबर्गमें ब्रिटिश भारतीय संघकी ओरसे विवाहके सम्बन्धमें पारित जो प्रस्ताव सरकारको केप टाउन भेजा गया था,[१] उसका उत्तर श्री काछलियाको मिल गया है। उसमें गृह-मन्त्रीने लिखा है कि वे यह समझ पाने में असमर्थ है कि न्यायाधीश सर्लके निर्णयसे भारतीय समाज इतना उत्तेजित क्यों हो गया है। [उनका कहना है कि ] विवाहोंके सम्बन्धमें कानूनकी स्थिति और इस सवालके बारेमें सरकारकी राय क्या है, इससे भारतीय समाज अपरिचित नहीं है। सरकारने बार-बार यह कहा है कि कानूनको दृष्टिसे स्थिति चाहे जो हो, लेकिन इस कानूनको वह अन्यायपूर्ण ढंगसे लागू नहीं करना चाहती। यदि किसी स्त्रीका विवाह इस्लाम अथवा किसी अन्य धर्मकी रीतिके अनुसार हुआ हो, और विवाहोंके बारेमें दी गई साक्षी सन्तोषप्रद हो तथा अगर यह भी स्पष्ट हो गया हो कि उस व्यक्तिकी दक्षिण आफ्रिकामें अन्य कोई पत्नी नहीं है, तो उसे उतरनेकी आज्ञा दे दी जाती है। अधिकारियोंको हिदायतें दे दी गई हैं कि न्यायाधीश सर्लके निर्णय के बावजूद अबतक ऐसे मामलोंमें जैसा होता आया है वैसा ही होता रहेगा; उसमें कोई परिवर्तन नहीं करना है। इस उत्तरसे पता चलता है कि संघके प्रस्तावोंके प्रभावके सम्बन्धमें रायटर-के तारसे हमने जो अनुमान निकाला था, वह ठीक है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि सत्याग्रहके प्रस्तावसे सरकार चौंक गई है। तारसे पता चलता है कि फिलहाल तो स्त्रियोंको अधिक परेशान नहीं किया जायेगा। लेकिन हमें आश्वस्त करनेके लिए यह पर्याप्त नहीं है। न्यायाधीश सर्लके निर्णयकी तलवार जबतक हमारे सिरपर लटकती रहेगी तबतक हम चुप होकर नहीं बैठ सकते। अगर सरकारका इरादा अबतक चले आ रहे रिवाजमें कोई परिवर्तन करनेका नहीं था तो उसने न्यायाधीश सर्लसे स्पष्ट निर्णय क्यों मांगा? बाई मरियमको किसलिए रोका गया? सरकारके कहनेके अनुसार बाई मरियमकी सौत हिन्दुस्तानमें है। उसके [बाई मरियमके पतिकी] कोई दूसरी पत्नी है या नहीं, सो हम नहीं जानते। लेकिन सरकारको उत्तर देनेके लिए इतना ही पर्याप्त है कि अगर उसकी कोई दूसरी पत्नी है भी तो वह हिन्दुस्तानमें है। इसलिए तारमें जो आश्वासन दिया गया है, वह सरकारको बादमें सूझा है। इसके सिवा, इस सन्दर्भ में जनूबीके मामलेपर विचार करनेसे स्पष्ट हो जाता है कि इस मामले में सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकेगी। यदि जनूबीका विवाह वैध नहीं माना जाता, तो उसका अधिकार रद हो जाता है, और जबतक कानून में संशोधन नहीं किया जाता तबतक हमें राहत देनेकी सत्ता न तो सरकारको है, न अन्य किसीको। वह [राहत ] तो केवल संसद ही दे सकती है। संसदसे हमें यह राहत दिलानेका काम सरकारका है। अभी तो संसदका अधिवेशन भी चालू है। प्रवासी विधेयक अभी इसके

  1. १.देखिए "पत्र : गवर्नर-जनरलके निजी सचिवको", पृष्ठ १० ।