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३७९. धन्यवादका सन्देश'

केप टाउन

जुलाई १८, १९१४

मैं, श्रीमती गांधी, श्री कैलेनबैक और अपनी ओरसे उन सैकड़ों लोगोंको हृदय से धन्यवाद देता हूँ जिनके तार यहाँ हमारे जहाजपर पहुँचनेकी प्रतीक्षा कर रहे थे । दक्षिण आफ्रिकाके सभी भागोंसे आये हुए ये तार, जिनमें प्यार और सहानुभूतिके सन्देश हैं, हमें और भी याद दिलायेंगे कि दक्षिण आफ्रिकाका हमारे लिए क्या अर्थ है । हमें विश्वास है कि बहुतसे यूरोपीय मित्रोंने हमारे प्रति व्यक्तिगत रूपसे जो सद्भावना प्रदर्शित की है, वह अब उन लोगोंको दी जायेगी जिनके हितके लिए दक्षिण आफ्रिका में हमारे जीवन समर्पित थे ।

[ अंग्रेजीसे ]

नेटाल मर्क्युरी, २०-७-१९१४

३८०. अन्तिम सत्याग्रह संघर्ष : भूमिका

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[ एस०एस० किनफॉन्स कैंसिल

जुलाई २३, १९१४]

मैंने दक्षिण आफ्रिका तो छोड़ दिया किन्तु इस देशके साथ अपना सम्बन्ध नहीं छोड़ा है। यह बात दक्षिण आफ्रिकाके अपने अन्तिम दिनोंके कई भाषणों में मैंने कही भी थी। इस वचनके पालनका कुछ प्रमाण 'इंडियन ओपिनियन 'के लिए मैं जो लेख लिखूंगा उनसे मिलता रहेगा। अपने इन लेखोंमें मैं [ समय-समयपर ] मुझे जो विचार सूझेंगे उन्हें प्रकट करूंगा और यह आशा रखूंगा कि पाठकोंको वे अच्छे लगेंगे और उपयोगी भी सिद्ध होंगे।

यह लेख में किनफॉन्स कैंसिल नामक स्टीमरपर शुरू कर रहा हूँ। आज हमें केप छोड़े पाँच दिन हो चुके हैं। श्री कैलेनबँक, मेरी धर्मपत्नी और मैं तीसरे दर्जेके यात्री हैं। इंग्लैंडकी समुद्री यात्रा तीसरे दर्जेमें करनेका यह मेरा पहला अनुभव है। पहले दर्जेकी यात्राका अनुभव तो बहुत है। मुझे कहना पड़ेगा कि पहले दर्जेकी अपेक्षा तीसरे दर्जेमें हम ज्यादा सुखी हैं। यहाँ हमारे ऊपर परिचारक निगरानी नहीं करते रहते; और इस पश्चात्तापसे भी बचे हैं कि हम गरीब वर्गसे अलग रहकर [सुख-सुविधाका ] विशिष्ट जीवन बिता रहे हैं। पहले दर्जेमें मनको जिस संकोचका अनुभव होता है वह

१. गांधीजीने यह सन्देश बेतारके तारसे रायटरकी एजेंसीको रवाना होनेके अनतिपश्चात् जहाजसे भेजा था ।