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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। मैंने एसी घनिष्ठतम मैत्री कायम की हैं जो चिरस्थायी रहेगी। इस कारण और ऐसे ही अन्य अनेक कारणोंसे, जिन्हें यदि अखबारोंके सौजन्यका दुरुपयोग होनेका भय न होता तो मैं लिखना चाहता, यह उप-महाद्वीप मेरे लिए एक पवित्र और प्रिय देश बन गया है, और मेरी मातृभूमिके बाद मेरे मनमें उसीके लिए स्थान है। मैं भरे-हृदय दक्षिण आफ्रिकाके तटोंको छोड़ रहा हूँ, और जो दूरी मुझे दक्षिण आफ्रिकासे अलग रखेगी वही मुझे उसके और भी निकट लायेगी। मुझे उसकी भलाईकी चिन्ता सदा रहेगी, और मेरे देशभाइयोंने मुझपर प्रेमकी जो वर्षा की है और यूरोपीयोंने मेरे प्रति जैसी उदारतापूर्ण सहिष्णुता और कृपा दिखाई है वह मेरी स्मृतिमे सदैव एक बहुमूल्य निधिकी भाँति सुरक्षित रहेगी।

[अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, २९-७-१९१४

आपका,

मो० क० गांधी


३७७. भाषण : केप टाउनके विदाई समारोहमें

जुलाई १८, १९१४

श्री गांधीने कहा कि मेरा तथा मेरी पत्नीका आज दक्षिण आफ्रिकासे विदा होनेके अवसरपर आपने जो सम्मान किया है उसके लिए मैं हृदयसे आपको धन्यवाद देता हूँ। जिन्होंने यह सुन्दर अभिनन्दनपत्र तैयार किया है और उसमें जैसे उद्गार प्रकट किये हैं, उनको भी मैं धन्यवाद देता हूँ। आपने दक्षिण आफ्रिकामें की गई मेरी तुच्छ सेवाओंके लिए उदारतावश मेरी प्रशंसामें जो शब्द कहे उसके दशमांशके योग्य भी में होता तो मुझे खुशी होती। श्री गुल और डॉ० अब्दुर्रहमानके भाषण भी मेरी प्रशंसा की गई है, किन्तु मैंने दक्षिण आफ्रिकामें अपने देशभाइयोंकी जो-कुछ थोड़ी-सी सेवा की है, वह स्वयं ही अपने आपमें मेरे लिए पर्याप्त पुरस्कार है।

आपने मुझे बहुमूल्य उपहार भेंट किये हैं। यदि आपने मेरे जीवनका तनिक भी अवलोकन किया है तो आप देखेंगे कि पिछले कुछ वर्षोंसे मैंने जैसा जीवन बितानेका प्रयास किया है उसके साथ ये उपहार मेल नहीं खाते। मैंने भारतमें भी ऐसा ही जीवन बितानेका निश्चय किया है। फिर भी, ये उपहार आपके प्रेम, आपकी सहानुभूति

१. गांधीजी कस्तूरबा, कैलेनबैक, श्री और श्रीमती पोलक और कुमारी श्लेसिनके साथ 'इम्पीरियल मेल' से पहुँचे । स्टेशनपर बहुत बड़ी संख्यामें यूरोपीय और भारतीय मित्रोंने उनका स्वागत किया, और फिर एक जुलूसमें उन्हें बन्दरगाहकी गोदीपर ले जाया गया। यहाँ मद्रास भारतीय संघ और अन्य संगठनोंकी ओरसे मानपत्र और उपहार दिये गये। डॉ० अब्दुर्रहमान और डॉ० जे० एच० गुलने अपने भाषणों में गांधीजीकी सेवाओंका बखान किया, और इस सबके बाद गांधीजीने अपना यह भाषण दिया ।