पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/५३३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३७६. विदाईका पत्र'

[ केप टाउन

जुलाई १८, १९१४]

भारत रवाना होते समय, मैं दक्षिण आफ्रिकाके अपने देशभाइयोंसे, यूरोपीय समाजसे भी, चन्द शब्द कहना चाहता हूँ । यूरोपीय और भारतीय मित्रोंने अपनी कृपासे जिस प्रकार मुझे अभिभूत कर दिया है उसके कारण मैं उनका ऋणी होकर भारत जा रहा हूँ। भारतमें रहकर जो-कुछ सेवा वहाँ मुझसे हो सकेगी उसे करके, मैं इस ऋणको चुकानेका यत्न करूंगा, और यदि दक्षिण आफ्रिकाकी भारतीय समस्या के बारेमें बोलते हुए मुझे उन अन्यायोंका जिक्र करना पड़ा जो मेरे देशबन्धुओंके साथ यहाँ हुए हैं या आगे होंगे तो मैं वादा करता हूँ कि जान-बूझकर उसमें अतिशयोक्ति नहीं करूंगा और सत्यका ही बयान करूंगा--सत्यके अतिरिक्त और कुछ नहीं करूंगा।

समझौते और उसके अर्थके बारेमें भी मैं दो शब्द कहना चाहता हूँ। मेरी तुच्छ सम्मतिम यह इस देशमें हमारी स्वतन्त्रताका अधिकार पत्र (मैग्ना कार्टा) है। मैं इसे यह ऐतिहासिक नाम इसलिए नहीं दे रहा हूँ कि इसने हमें कोई ऐसे अधिकार दिये हैं जिनका हमने कभी भोग नहीं किया है, या जो स्वयंमें नये और महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि इसलिए कि यह आठ वर्ष के ऐसे निरन्तर कष्ट सहनके बाद प्राप्त हुआ है जिसमें भौतिक सम्पत्ति तथा मूल्यवान प्राणोंकी हानि उठानी पड़ी है। मैं इसे 'मैग्ना कार्टा' इसलिए कहता हूँ कि यह हमारे प्रति सरकारकी नीतिमें परिवर्तनकी सूचना देता है, और हमें प्रभावित करनेवाले मामलोंमें न केवल हमारी सलाह लेने बल्कि हमारी विवेक- सम्मत आकांक्षाओंका आदर किये जानेके हमारे अधिकारकी स्थापना करता है। इसके अलावा वह ब्रिटिश संविधानके इस सिद्धान्तकी भी पुष्टि करता है कि सम्राट्की विविध प्रजाओंके बीच कानूनी तौरपर कोई जातिगत असमानता नहीं होनी चाहिए फिर चाहे स्थानीय परिस्थितियोंके अनुसार इसके अमलमें कितनी भी विविधता क्यों न पाई जाये। इस सबसे बढ़कर इस समझौतेको हमारा 'मैग्ना कार्टा' इसलिए कहा जाना चाहिए कि इसने सत्याग्रहको एक कानून-सम्मत स्वच्छ अस्त्रके रूपमे प्रमाणित कर दिया है, और समाजको सत्याग्रहकी शक्लमें एक नई शक्ति दी है; और मैं इसे उस मताधिकारकी अपेक्षा कहीं ऊँची शक्ति मानता हूँ जिसे इतिहास में अक्सर ही, प्रायः स्वयं मतदाताओंके ही विरुद्ध काममें लाया गया है।

समझौता अन्तिम रूपसे उन सब बातोंका निबटारा कर देता है, जिनको लेकर सत्याग्रह किया गया था, और ऐसा करके उसने न्याय और औचित्यकी भावनाको

१. दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके और यूरोपीयोंके नाम लिखा गया यह पत्र गांधीजीने केप टाउन में रायटर के जरिये प्रकाशित कराया । यह पत्र रैंड डेली मेलके २०-७-१९१४ के अंक और ट्रान्सवाल लीडरके २४-७-१९१५ के अंकमे प्रकाशित हुआ था ।