पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/५३२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४९२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बनी है, तथा उल्लिखित खण्डके बावजूद, भारतीय ट्रान्सवालमें जहाँ चाहें वहाँ रहते हैं। इसलिए यह बिलकुल स्पष्ट है कि जहाँतक कानूनी पहलूका सम्बन्ध है, वे भारतीय जिनपर कर रद होनेका असर पड़ा है, हूबहू उसी स्थितिमें हैं जिसमें कि वे लोग हैं जो १८९१ के कानून २५ के अन्तर्गत आये थे। इसके अलावा यह तथ्य भी है। कि स्वयं आयोगने, जिसमें तीन ख्यातिप्राप्त वकील थे, १८९५ के इस विवादास्पद कानूनके छठे खण्डको रद करनेकी सिफारिश की और इस कानूनके अन्तर्गत आने- वाले लोगोंको उसी स्थितिमें रखनेके लिए जिसमें कि १८९१ के कानून २५ के अन्तर्गत आनेवाले लोग हैं, इसे रद करना ही पर्याप्त समझा। भारत सरकार और साम्राज्य- सरकारकी भी वही राय है जो आयोगकी है और उन्होंने स्पष्ट रूपसे यही समझा है कि कर रद होनेके बाद उन लोगोंको अपने-अपने वर्तमान गिरमिटकी अवधि पूरी कर लेनेपर प्रान्तमें बसनेकी स्वतन्त्रता होगी और संघ सरकारने स्वयं यह घोषणा की है कि वह भी कानूनका यही अर्थ लगाती है। इन सब बातोंको ध्यान में रखते हुए हमें शंका करनेका कोई कारण नजर नहीं आता। 'मर्क्युरी' ने आगे सुझाव दिया है कि संघ सरकारका आवश्वासन पर्याप्त भले ही हो, किन्तु यदि उसपर आधारित कानूनी अर्थ सही हुआ और हर्टसॉग प्रधानमन्त्री बन गये तो उस आश्वासनका कोई मूल्य नहीं होगा। भारतीय प्रश्नपर जनरल हर्टसॉगकी चाहे जो भी नीति हो हम इस आशंका में शामिल नहीं हो सकते। एक संविधानिक राज्यमें जैसा कि दक्षिण आफ्रिकी संघ है, जनरल हर्टसॉग उस वादेसे बँधे होंगे जो उनके पूर्ववर्ती प्रधानमन्त्रीने तीसरे पक्षसे किया है। वे नीति बदल सकते हैं, कानून बदल सकते हैं, परन्तु अपने पूर्ववर्ती पदाधि- कारियोंके तीसरे पक्षके लिये दिये गये वादेको नहीं तोड़ सकते और वे ऐसा करनेका साहस भी नहीं करेंगे। यदि वे ऐसा कर सके तो यह स्पष्ट है कि सरकारका ही अन्त हो जाता है और जहाँ भी उत्तरदायी मन्त्रिमण्डल है वहाँ जनता सरकारके साथ किसी भी आश्वासनके बावजूद सरोकार नहीं रख सकती। अन्तमें हमारे देशभाइयोंको भविष्यके सम्बन्धमें कोई भी भय करनेकी जरूरत नहीं है। होनेको तो बहुत-सी बातें हो सकती हैं; किन्तु उनके होनेकी सम्भावना बहुत ही कम है। सम्भव है, सर्वोच्च न्यायालय कानूनका वैसा ही अर्थ निकाले जैसा कि 'मर्क्युरी' ने निकाला है। यद्यपि यह नितान्त असम्भव है फिर भी हो सकता है कि भावी सरकार या मौजूदा सरकार भी जान-बूझकर किये गये वादेको तोड़े। निश्चय ही इन परिस्थितियों में विशुद्ध आत्मासे और संसारके सामने पूरे औचित्यके साथ भारतीय इसी दुर्दमनीय अस्त्र -सत्याग्रहका प्रयोग कर सकते हैं, जैसा उन्होंने अबतक किया है।

[ अंग्रेजी से ]

इंडियन ओपिनियन, २२-७-१९१४