जोहानिसबर्ग
जुलाई १६, १९१४
मेरे गुजराती बन्धुओंने मेरी और श्रीमती गांधी की बहुत सेवा की है। परन्तु इतना तो मुझे कहना पड़ता है कि हमारे संघर्ष में जैसी सेवा तमिल लोगोंने की वैसी गुजराती बन्धु नहीं कर सके । मुझे उम्मीद है कि [ इस दिशामें ] गुजराती बन्धु तमिल समाजसे सबक लेंगे। मैं तो तमिल लोगोंकी भाषा भी नहीं जानता पर तो भी उन्होंने संघर्ष में मुझे बड़ी भारी मदद की है। चूंकि मैं गुजराती समझता हूँ अतः मैं अपनी बात गुजराती बन्धुओंको सबसे अधिक और सुगमतापूर्वक समझा सकता हूँ । फिर भी गुजराती बन्धु अपना कर्त्तव्य पालन नहीं कर पाये। वे तो पैसेके पीछे पड़े हैं। यह जानकर तो मुझे और भी दुःख है कि कुछ लोगोंको शराबकी लत लग गई है। मुझे उनपर दया आती है। हममें जो समझदार हैं उनका यह कर्त्तव्य है कि वे ऐसे लोगोंका इस बुरी आदतसे उद्धार करें। कुछ लोग सोनेका तस्कर व्यापार करते हैं । उनका खयाल है कि ऐसा करने से अपने देश में पैसा जाता है। परन्तु अधर्म द्वारा कमाया हुआ पैसा कहीं भी स्थिर नहीं रह पाता। मैं यद्यपि अभी ऐसी स्थिति तक नहीं पहुँचा हूँ कि पैसेकी सहायता न माँगूं पर यदि इस स्थिति तक पहुँच पाऊँ तो खास तौरसे ऐसे धनकी सहायता कभी स्वीकार न करूँ जो अन्यायसे कमाया गया हो। आप लोगोंको लगता होगा कि मैं जब कभी आपसे कुछ कहता हूँ मेरे शब्द सख्त ही होते हैं। पर मेरे ये कड़वे बोल आपके लिए अन्तमें मीठा फल देंगे। मैं आप लोगोंसे दूर - - मातृ- भूमिको जा रहा हूँ परन्तु आप लोगोंका स्नेह मैं कभी भी भुला नहीं सकूँगा ।
[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ५-८-१९१४
[जुलाई १८, १९१४ के पूर्व ]
तीन-पौंडी करके हटाये जानेके कारण यह आशंका हो गई है कि इससे वे भारतीय जिनपर इसका असर पड़ा है, निषिद्ध प्रवासी बन जायेंगे और इस कारण उनकी स्थिति पहलेसे बदतर हो जायगी। इसीलिए हमारा वास्तविक कानूनी स्थितिपर विचार करना उपयुक्त होगा। क्योंकि, यदि यह सच है कि हर करके हटाये जानेपर वे निषिद्ध
१. गांधीजी और कस्तूरबाको विदा देनेके लिए जोहानिसबर्गेमें गुजरातियोंकी यह सभा हुई थी।
२. जाहिर है कि यह लेख १८ जुलाईसे पहले उस समय लिखा गया था जब गांधीजीने इंग्लैंड होते हुए भारत जानेके लिए प्रस्थान किया था।