पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/५३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९.
हिन्दुओंसे


कानूनन पत्नीका दर्जा दिलाने के लिए अपने विवाहको पंजीकृत करवा लें। हमें आशा है कि कोई भी भारतीय ऐसा करनेको राजी नहीं होगा। जो विवाह हो चुका है,उसका फिरसे किया जाना कैसे सम्भव होगा? श्री टैथम कहते हैं कि जिस व्यक्तिके दो पत्नियां होंगी वह कानूनकी दृष्टिमें अपराधी माना जायेगा। यह बात यों तो सही है, लेकिन ऐसी है जिसे हम सहन नहीं कर सकते। हम चेतावनी देते हैं कि बाई जनूबीके मामलेके परिणाम इतने गम्भीर है कि यदि सरकार मामलेको खत्म कर दे,तो भी अदालतें हमारे बच्चोंको कानूनी वारिस नहीं मानेंगी। सरकार अदालतोंको आदेश नहीं दे सकती। यह मामला कानूनकी व्यवस्थासे सम्बन्धित नहीं है, वरन उसकी व्याख्यासे सम्बन्धित है; और व्याख्या करना अदालतोंके हाथमें है। हमें शान्त करनेके लिए सरकार सम्बन्धित अधिकारियोंको आदेश देकर हमारी पत्नियोंको प्रवेशकी अनुमति दे सकती है, परन्तु हमारे बच्चोंको कानूनन वारिस माननेका अधिकार तो अदालतोंको है। और यदि हमारे विवाह कानूनन अवैध माने जाते है तो अदालतें हमें कोई भी राहत नहीं दे सकेंगी। यह कठिनाई तो कानूनमें संशोधन करके ही दूर की जा सकती है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-४-१९१३

१६. हिन्दुओंसे

लोग यह कहते हुए सुने गये हैं कि न्यायाधीश सर्लका निर्णय हिन्दुओं अथवा पारसियोंपर लागू नहीं होता। यह बात बिलकुल निराधार है। इस निर्णयका ठीक अर्थ तो यह है कि जो विवाह इस देशके कानूनके अनुसार सम्पन्न न हुआ हो,वह विवाह विवाह नहीं माना जा सकता। इस निर्णयके कारण अब यह सवाल उठता ही नहीं है कि किसी व्यक्तिके एक पत्नी है अथवा दो। यह बात अच्छी तरह याद रखने योग्य है। हम तो यहाँतक सलाह देंगे कि जबतक इस विवादका कोई हल नहीं निकलता तबतक जो हिन्दू, मुसलमान या पारसी अपनी स्त्रियोंको सत्याग्रहमें शामिल नहीं करना चाहते वे उन्हें यहाँ न बुलायें। हमें आश्चर्य तथा खेद तो इस बातपर होता है कि अभीतक समस्त दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय उपर्युक्त निर्णयको सुनकर भड़क क्यों नहीं उठे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमारा सारा शौर्य लुप्त हो गया है ! अजीब बात है कि कानून हमारी पत्नियोंको रखैल माने और हम हाथपर-हाथ धरे बैठे रहें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-४-१९१३