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भाषण: तमिल समाजको सभामें

रही। वे तो सिर्फ अपने अन्तःकरण द्वारा दिया गया पुरस्कार चाहते थे। । दक्षिण आफ्रिकामें जन्म पाने के नाते केप-प्रान्तमें प्रवेश पानेके अधिकारके लिए वे लड़े हैं। यह अधिकार उन्हें मिल गया है। कानूनोंके न्याययुक्त अमलके लिए वे लड़े। वह भी उन्हें मिल गया है। फ्री-स्टेटके कानूनमें से जातीय भेदको हटाने के लिए वे लड़े। वह भी वे पा गये हैं। तीन-पौंडी कर तो अब भूतकालकी वस्तु बन ही गया है। और विवाहके प्रश्नके बारेमें जो प्यारी बहनें जेलमें गई थीं वे सब अब अपने पतियोंकी ही पत्नियाँ कहला सकेंगी; जब कि कल तक [यूरोपीय ] मित्र केवल शिष्टाचारके खातिर उन्हें ऐसा कह सकते थे, परन्तु कानूनके अन्दर वे पत्नियाँ नहीं मानी जाती थीं। लड़ाईके उद्देश्योंमें से यह भी एक था और उसमें सफलता मिली। तमिल भाई सत्यके लिए लड़ रहे थे और सत्यकी विजय हुई है। -मेरी या उनकी नहीं। कलको वे चाहें तो एक असत् उद्देश्यके लिए भी लड़ सकते हैं, परन्तु उसमें उनकी निश्चय ही हार, और करारी हार होगी। सत्य अजेय है। और जब-जब भी उसके लिए लड़नेका निमन्त्रण मिलेगा, मुझे आशा है कि तमिल भाई अवश्य ही दौड़ पड़ेंगे। एक बात और है। कौमके हर भागकी तरह उनके अन्दर भी कभी-कभी ईर्ष्याकी भावना दिख जाती है। ये तुच्छ राग-द्वेष लड़ाईसे सम्बन्धित नहीं, दूसरी बातोंसे सम्बन्धित हैं जिनका लड़ाई से कोई वास्ता नहीं है। मुझे आशा है कि ये सब ईर्ष्या-द्वेष और मतभेद दूर हो जायेंगे और वे अपनी और उन दूसरोंकी नजरोंमें भी, जो उन्हें तथा उनके चरित्रको गहराईको जानने लगे हैं, और ऊपर उठ जायेंगे । अन्य भारतीयोंकी भाँति तमिलोंमें ईर्ष्या-द्वेष हो नहीं, स्वार्थ-भरे छोटे-छोटे आपसी झगड़े भी हैं। मैं चाहता हूँ कि वे उन्हें विशेष रूपसे अपने बीचसे निकालकर बाहर कर दें। क्योंकि उन्होंने अपने आपको मातृभूमिके लिए समर्पित करनेमें इतना अधिक योग्य साबित किया है। और भारतकी सेवाकी शिक्षा पाने के लिए अपने चार पुत्रोंको समर्पित करनेवाले भी तो एक तमिल गृहस्थी ही हैं। मुझे विश्वास है कि श्री और श्रीमती नायडू अच्छी तरह जानते हैं कि वे कितना बड़ा काम कर रहे हैं। वे सारे जीवन-भरके लिए अपने इन बच्चोंपर से अपना अधिकार छोड़ रहे हैं। और ये बच्चे भी अपने माता-पिताकी आर्थिक दशा सुधारनेके लिए सम्भवतः कुछ नहीं कर सकेंगे। उन्हें तो सदा भारतके सेवक ही बनकर रहना है। यह कोई हँसी-खेल नहीं है। फिर भी श्री और श्रीमती नायडूने यह बड़ा काम किया है। श्री गांधीने कहा, मेरी सबसे बड़ी अपील तो यह है कि सभी वर्गों और भागोंके भारतीयोंको अपने आपसी लड़ाई-झगड़े और ईर्ष्या-द्वेष बिलकुल छोड़ देने चाहिए। इसी प्रकार जब कभी वे किसीको अपना सभापति या अध्यक्ष चुनें तो उनको सभापतिकी आज्ञाका पालन करना चाहिए तथा उनका अनुसरण करना चाहिए और कभी इसकी और कभी उसकी बातोंपर ध्यान नहीं देना चाहिए। अगर वे दूसरोंके कहनेमें लग जायेंगे तो अपनी उपयोगिता बहुत घटा लेंगे। अगर उनकी जगह उनके

१. देखिए " भाषण: विदाई-भोजमें", पृष्ठ ४६४ ।