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सम्पूर्ण गांधी वाड्मय

लड़ाईमें सबसे अधिक संख्यामें मौतें तमिल-समाजमें ही हुईं। आज ही सुबह हम एक बहन और एक भाईके स्मारकका अनावरण करनेके लिए गये थे। वे दोनों तमिल थे । नारायण सामीकी अस्थियाँ डेलागोआ-बेमें पड़ी हैं। वे भी तमिल ही थे। निर्वासित किये गये लोग भी तमिल थे। लड़ाईमें सबसे अन्ततक लड़नेवाले और सबके बाद जेलसे छूटनेवाले भी तमिल ही थे। जो फेरीवाले बरबाद हो गये वे भी सब तमिल ही थे। टॉल्स्टॉय फार्मपर रहनेवाले सत्याग्रहियोंमें से अधिकांश तमिल हैं। श्री गांधीने कहा, इस तरह तमिलोंने सिद्ध कर दिया है कि वे हर क्षेत्रमें उत्तमोत्तम भारतीय परम्पराओंके श्रेष्ठ उदाहरण हैं। मेरे इस कथनमें जरा भी अत्युक्ति नहीं है। ईश्वरमें और सत्यमें तमिल भाइयोंकी विपुल श्रद्धा ही संघर्षके इन लम्बे वर्षोंमें भारतीयोंको टिकाये रखनेवाली एक मुख्य शक्ति रही है। जेल जानेवाली बहनोंमें भी अधिकतर तमिल रही हैं। और गिरफ्तार करनेके लिए आनेवाले अधिकारियोंकी परवाह न करके न्यू कैंसिलको बारकोंमें और घर-घर जाकर मजदूरोंको काम छोड़ कर हड़तालके लिए समझाने के लिए जानेवाली बहनें कौन थीं? वे भी तमिल ही थीं। एक पौंड पावरोटी और एक औंस (ढाई तोला) चीनी खाकर कौन रहे? ये भी ज्यादातर तमिल हो थे । यद्यपि यहाँ न्यायके खातिर मुझे उन भाइयोंकी भी तारीफ करनी चाहिए जो कल- कत्तावाले कहे जाते हैं। आखिरी लड़ाईमें इन्होंने भी अच्छा भाग लिया था। परन्तु में उसे तमिलोंके जितना अच्छा नहीं कह सकता। हाँ, साहस उनका भी लगभग वैसा ही रहा जैसा कि तमिल भाइयोंका। परन्तु यह नहीं भुलाया जा सकता कि तमिल भाई पिछले आठ वर्षसे लगातार लड़ते रहे हैं और उन्होंने शुरूसे ही बता दिया कि वे किस धातुके बने हुए हैं। यहाँ जोहानिसबर्गमें तो उनकी संख्या बहुत कम है। परन्तु फिर भी मेरा खयाल है जो लोग बार-बार जेल गये उनमें सबसे अधिक संख्या तमिलोंकी ही है। अगर जेल जानेवालोंकी कुल संख्या जानना चाहें तो इसमें भी सबसे बड़ी संख्या तमिलोंकी ही मिलेगी। इसीलिए तो जब में किसी तमिल सभामें जाता हूँ, मुझे ऐसा लगता है मानों में अपने सगे-सम्बन्धियोंके बीच ही आया हूँ। तमिलोंने इतनी अधिक हिम्मत, इतनी श्रद्धा, इतनी कर्त्तव्यनिष्ठा और इतनी महान् सादगी दिखाई है, और फिर भी उनमें यशका कोई लोभ नहीं है। मैं तो उनकी भाषा भी नहीं बोलता, हालांकि चाहता बहुत हूँ, और फिर भी वे (तमिल तो) लड़ाईमें डटे ही रहे हैं। यह सारा अनुभव ऐसा भव्य और अमूल्य है कि जिसकी याद में सदैव संजो कर रखूंगा। अब ऐसे लोगोंको मैं समझौता किस प्रकार समझाऊँ? वे तो समझौता चाहते ही नहीं हैं। किन्तु अगर समझाना ही है तो मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि तमिल भाई और उनके प्रियजन जिस चीजके लिए लड़े हैं वह प्राप्त हो गई है। और वह प्राप्त हुई है उस चरित्र-बलसे जो उन्होंने प्रदर्शित किया है। और इतना सब करनेपर भी तमिल भाइयोंको कोई पुरस्कार पानेकी कभी कोई इच्छा नहीं

१. देखिए “श्रद्धांजलि : सत्याग्रही शहीदोंको ", पृष्ठ ४७७-७९ ।