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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री गांधीने उत्तर देते हुए कहा कि दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे बच्चोंके लिए पंजीयन कराना अनिवार्य नहीं है। सोलह वर्षकी अवस्था तक वे पूर्णतः स्वतन्त्र हैं। यदि [ इस संघर्षमं] सभी सत्याग्रही काम आ जाते और में एक अकेला ही बच रहता तो भी में मृत्युपर्यन्त इसी उद्देश्यकी पूर्तिके लिए लगा रहता। आगेके लिए मैं कह हो चुका हूँ कि समझौता इस अर्थमें अन्तिम रूपसे सम्पन्न हो चुका है कि सत्याग्रह समाप्त हो चुका है। मैंने जनरल स्मट्सके नाम अपने पत्रमें वार्ताका द्वार खुला रखा था। समझौता उन माँगोंके बारेमें हुआ है जिनको आगे रखकर हमने सत्याग्रह शुरू किया, संघर्ष किया और कष्टसहन किया था। अन्य किसी भी मुद्देपर यह समझौता लागू नहीं होता और इस समझौतेसे अन्य किसी माँगको समाप्त हुई नहीं मान लेना चाहिए। यह समझौता हमें विशाल जन-सभाएँ करने, उनमें प्रस्ताव पास करने और नया सत्याग्रह शुरू करनेसे तो नहीं रोकता । अन्तर-प्रान्तीय प्रवासके प्रश्नपर तो अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है। समझौतेकी शर्तोंमें यह शामिल नहीं था और इसे लेकर प्रचार-आन्दोलन करना भारतीय समाजके लिए औचित्यपूर्ण भी है।

यदि भारतीय समाज इस निष्कर्षपर पहुॅचे कि अभीतक उनकी कुछ ऐसी शिका- यतें बनी हुई हैं जिनको लेकर फिरसे सत्याग्रह छेड़ना औचित्यपूर्ण होगा, तो वह फिरसे सत्याग्रह छेड़ सकता है। यह समझौता मुझपर या भारतीय समाजपर इस सम्बन्धमें कोई बन्दिश नहीं लगाता । उदाहरणके लिए, फ्री स्टेटका प्रश्न, परवाना कानून, स्वर्ण- कानून और बस्ती-कानून आदिके प्रश्न हैं। परन्तु ऐसा कोई कदम उठाने से पहले मेरे देशवासियोंको इन विषयोंके सम्बन्धमें यूरोपीयोंको सारी स्थिति भली प्रकार समझा देनी चाहिए। विवाहको समस्याके क्षेत्रमें यह समझौता कुरान शरीफ द्वारा निश्चित किये गये नियमोंको किंचित् भी भंग नहीं करता। मैं यह मानकर चला हूँ कि हम ईसाई समाजसे कहीं भी आशा नहीं कर सकते कि वह बहु-पत्नी विवाहको कानूनी करार देगा। इसलिए इसमें कोई विवादग्रस्त प्रश्न था ही नहीं। मेरा चौबीसों घंटेका कार्यक्रम



एक-पत्नी विवाहके बारेमें मुसलमानोंकी ओरसे कोई वचन न दें । इसलिए कि वह खुदाके कानूनके खिलाफ होगा । और कुरान शरीफमें कहा गया है कि "खुदाके कानूनके खिलाफ जानेवालेको हमेशा के लिए दोजखकी आगमें डाल दिया जायेगा ।" इसलिए वे इस सरकारी कानूनको नहीं मान सकेंगे और इस देशमें अविवाहित ही रहेंगे । केपके १८६० के कानूनको एक भी मुसलमानने स्वीकार नहीं किया था। इसलिए उचित यही है कि श्री गांधी अन्तिम रूपसे एक सम्मानपूर्ण समझौतेकी बात करनेसे पहले एक सार्वजनिक सभा बुलाते। वक्ताने श्री गांधीको चुनौती दी कि वे एक सार्वजनिक सभा बुलाकर उसमें ब्रिटिश भारतीय संघकी कार्यवाहीका विवरण पेश करें। श्री गांधीने १९०९ के सत्याग्रह आन्दोलनके समय कहा था कि वे तबतक लड़ते रहेंगे जबतक कि सभी बच्चे स्वतन्त्र नहीं हो जाते, फिर चाहे उस संघर्ष में वे अकेले ही क्यों न रह जायें।

१. देखिए “ पत्र: ई० एम० जॉर्जेसको ", पृष्ठ ४२९-३० ।