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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपने लिये लूंगा और शेष राशिसे अस्पताल-कोष शुरू करूंगा। इंग्लैंड जाते समय मेरा खयाल डाक्टरी पास करके उस रूपमें जनताको सेवा करनेका था, लेकिन वे सब हवाई महल ही रहे। इस तरह वह न तो कोई सार्वजनिक कोष था और न कोई धर्मार्थ दान हो।' वह सारी राशि सत्याग्रह आन्दोलनके दौरान सार्वजनिक कार्यों और दक्षिण आफ्रिकी जनताके लाभार्थ खर्च की जा चुकी है; परन्तु उस निधिके बारेमें में अपनेको जनताके प्रति जिम्मेदार नहीं मान सकता। वैसे यदि एक बच्चा भी चाहे तो मेरे सार्वजनिक कार्योंका हिसाब-किताब आकर देख सकता है।

मुझे ब्रिटिश भारतीय संघके हिसाब-किताबके बारेमें भी आपसे यही कहना है कि उसकी समितिकी हर बैठकमें में खर्चका हिसाब पेश करता था। बादमें तो मेरे पास कई चन्दोंका काम आ गया था -- भारतीय-विरोधी कानून कोष, सत्याग्रह कोष और बम्बईके कई कोष। मैंने उन सभीका हिसाब-किताब पेश किया था, कुछका हिसाब तो समाचारपत्रोंके स्तम्भोंमें भी प्रकाशित कराया था। उनकी बहियाँ मौजूद हैं, मैं उनको अपने साथ लेकर नहीं जा रहा हूँ। कोई भी व्यक्ति, चाहे जब, श्री पोलकके पास जाकर उन चन्दोंके खर्चका ब्यौरा पूछ सकता है। यदि आप लोगोंके मनमें कोई बेजा बात न हो तो आप कभी भी जाकर उन बहियोंकी जाँच कर सकते हैं।

अगला प्रश्न है, हमारी कितनी माँगें मंजूर हुईं । श्री काछलियांके पत्रमें उठाये गये मुद्दे ये थे : विवाहको समस्या, तीन-पौंडी कर, ऑरेंज फ्री स्टेट और केपमें प्रवेशका प्रश्न, मौजूदा कानूनको भारतीयोंकी भावनाओंका ध्यान रखते हुए लागू करना । ये पाँचों माँगें तो मंजूर हो ही गई हैं, इनके सिवा कुछ और भी मिला है। अब सवाल है, व्यवसायियोंको क्या मिला? जो-कुछ समाजको मिला है वही व्यवसायियोंको भी मिला है; उनको तो शायद सबसे अधिक ही मिला है। समस्त दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीयोंकी दृष्टिमें भारतीय समाजने अपना मान बढ़ाया है। जनरल बोथा और अन्य लोग उनको अब कुली नहीं कह सकते। इस शब्दको अपमानजनक मानकर चुपचाप और कारगर तरीकेसे हटा दिया गया है। यदि हमने पिछले आठ वर्ष तक संघर्ष न किया होता तो भारतीयोंका आज किसी आत्म-सम्मानपूर्ण समाजकी हैसियतसे कोई अस्तित्व ही न रह जाता। वे बस्तियोंमें कुलियों और कुत्तोंकी भाँति रहकर ही किसी कदर अपना पेट भरते रह सकते थे। उससे अधिक माँगनेपर उनको कुछ नहीं मिलता। उन्हें न्यायालयोंसे बाहर खदेड़ दिया जाता और उनको अविश्वसनीय करार दिया जाता।


१. ट्रान्सवाल लीडरके समाचारमें ये शब्द भी मिलते हैं:"...केवल उनकी फीस थी और उस राशिको अस्पतालके काममें नहीं लिया गया था...।