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भाषण : मुसलमानोंकी सभामें

मैं अपना एक बड़ा सम्मान मानता हूँ; क्योंकि मैं जानता हूँ, आपमें से कुछ लोग समझौते के विरुद्ध थे और उन्होंने अन्तिम रूपसे समझौता सम्पन्न न होने देनेके लिए जमीन-आसमान एक कर दिया था। मुझे अभी आशा है कि में अपने उन देशवासियोंको भी नाराज नहीं रहने दूंगा। पहला प्रश्न यह था कि मैंने किस हैसियतसे सरकारके साथ यह समझौता किया या इसे स्वीकार किया, मुझे यह हक किसने सौंपा था ? यह हक मुझे समस्त दक्षिण आफ्रिकाके सामान्य भारतीयोंने सौंपा था, क्योंकि श्री काछलियाका अन्तिम पत्र ब्रिटिश भारतीय समाजकी ओरसे भेजा गया था। उसके मन्त्रीको हैसियतसे ही मैंने सारी वार्ता चलाई थी और जब देखा कि समझौता करनेमें हम अपनी ओरसे कुछ भी नहीं खोते हैं, बल्कि हम जो भी कुछ माँग रहे थे वह सब मिल रहा है, तो मैंने समाजसे उसके बारेमें फिरसे पूछना अनावश्यक समझा। कोई भी दूसरा सार्वजनिक कार्यकर्ता इसके अतिरिक्त कुछ कर भी नहीं सकता। यदि वह यह न करता तो अयोग्य कार्यकर्ता सिद्ध हो जाता। उस पत्रमें कही गई सभी बातोंपर अमल करके मैंने अपना कर्त्तव्य निभाया है। हाँ, जनरल स्मट्स चाहते थे कि यह समझौता सामान्यतया समाजके सभी लोगोंके द्वारा स्वीकृत हो -- वे इसमें कोई त्रुटि नहीं रहने देना चाहते थे। अभीतक जितनी सभायें हुई हैं लगभग उन सभीमें सर्वसम्मतिसे इसपर सहमति मिली है। दूसरा प्रश्न था: समझौतेसे हमको क्या मिला है ? श्री गांधीने कहा कि हमने जो कुछ माँगा था वह सभी पूरा-पूरा और अधिकतम उदारताके साथ दिया गया है।

अगला प्रश्न था: मैंने अस्पतालके कोषका क्या किया ? इसके बारेमें कुछ गलतफहमी रही है। यह कोष शुरू इस प्रकार हुआ था : पुराने स्थानोंसे बाड़े हटा दिये गये थे और उनमेंसे कुछ दावेदारोंकी ओरसे नगर परिषद्के विरुद्ध' मुकदमा लड़ा गया था। मैंने उनसे वकालतको पूरी फीस नहीं ली थी, जो यदि ली जाती तो ४० या ५० पौंड होती। मैंने उनको बतला दिया था कि मैं प्रत्येक बाड़ेदारसे थोड़ी-सी निश्चित फीस लूंगा और जो सारीकी-सारी मेरे ही लिए नहीं होगी। मैं उसमेसे ५ पौंड



१. ट्रान्सवाल लीडरने इसी तिथिके अपने अंकमें जो समाचार छापा था, उसमें यहाँ ये शब्द दिये गये थे: “, • एक भी शब्द विरोधमें नहीं कहा गया। सभी लोगोंने सब तरहसे उसका स्वागत किया ।”

२. ट्रान्सवाल लीडरके समाचारमें कहा गया है: " . मेरी समझमें समझौतेका द्वार खुला रखने या समझौता सम्पन्न करनेके बारेमें मुझे किसी भी तरहकी हिचकिचाहट दिखानेका कोई कारण नहीं था। हमने खोया तो कुछ भी नहीं है; पा सब कुछ लिया है।”

३. ट्रान्सवाल लीडरमें छपे समाचारमें यहाँ ये शब्द भी मिलते हैं: " . . . ९९ में से ७५ ने अपने दावे उनको सौंप दिये थे । उनको नगरपरिषद्से मुकदमेके खर्चका एक हिस्सा मिला था और उनको वकालतकी फीस लेनेके लिए भी अधिकृत कर दिया गया था !...'

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