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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तो वलिअम्माकी तरह अपने प्राण अर्पण करने में भी न चूकें। आप लोग श्रीमती वॉगलको न भूलें। उन्होंने निःस्वार्थ भावसे बहुत काम किया है। आज भी आप सिलाई-कक्षा चलाने तथा दूसरे कामों में उनसे मदद ले सकती हैं। उनका साथ भी कम लाभदायक नहीं। वे एक नेक महिला हैं, जिनके दिलमें हम लोगोंके लिए बड़ा प्रेम है। अगर उनका बस चले तो वे और भी बहुत कुछ कर सकती हैं। और उनसे जो बन सकता है उसे करने में कभी चूकती नहीं। श्रीमती वॉगलका हमपर बड़ा ऋण है। परन्तु श्रीमती वॉगलका सम्मान करनेका सबसे उत्तम तरीका यह नहीं होगा कि भेंटोंसे उन्हें लाद दिया जाये; बल्कि यह है कि उनकी सलाहपर चलें और उनकी मदद लें, जो कक्षाएँ आदि चलाने के सम्बन्धमे देनेके लिए वे सदा उत्सुक रहती हैं। भारतमें बहनें अपने छोटे और बड़े भाइयोंको भी बिदा करते समय अपने आशीर्वाद देती हैं। श्री गांधीने आशा प्रकट की कि वे संसारके किसी भी भागमें पहुँच जाएँ, बहनें उन्हें अपने आशीर्वाद देती रहेंगी।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ५-८-१९१४

३७१. भाषण : मुसलमानोंकी सभामें'

[ फ्रीडडॉर्प

जुलाई १५, १९१४]

कुछ श्रोताओंने तालियाँ बजाकर श्री गांधीका अभिनन्दन किया। श्री गांधीने प्रश्नोंका उत्तर देने से पहले श्रोताओंको विश्वास दिलाया: आपने मुझे यहाँ बुलाया, इसे

१. यह भाषण गांधीजीने हमीदिया इस्लामिया हॉलमें समझौतेके प्रति मुसलमानोंका असन्तोष व्यक्त करनेके लिए आयोजित एक विशाल सभामें दिया था। हॉल खचाखच भरा था। ईसप इस्माइल मियाँ उसके सभापति थे। गांधीजीका भाषण मुख्यतः उन विभिन्न प्रश्नोंका उत्तर ही था, जो सभाके अध्यक्ष और अन्य वक्ताओंने उनसे पूछे थे। रैंड डेली मेलने १६-७-१९१९ के अपने अंकमें इंसप मियाँ द्वारा कही गई बातोंका विवरण इस प्रकार दिया था: सभापतिके भाषणका अनुवाद किया गया। श्री गांधीने भी जब-तब अनुवादमें सहायता की। सभापतिने पूछा कि सरकारके साथ समझौंता करनेका अधिकार उनको किसने दिया था। इसके बाद उन्होंने प्लेग अस्पतालके कोषका उल्लेख किया और श्री गांधीसे पूछा कि उस कोषकी राशिका क्या हुआ। भारतीय संवने शुरूसे ही उस कोषमें चन्दा दिया था और वे चाहते हैं कि उसका हिसाब जनताके सामने रखा जाये तथा श्री गांधी उसकी स्थिति स्पष्ट करें। हमने चार माँगें पेश की थीं और श्री गांधीने स्वयं कहा है कि उनमें से केवल डेढ़ ही स्वीकृत हुई हैं। विवाहकी समस्याके सिलसिलेमें एक ऐसा प्रश्न उठा था, जिसका मुसलमानोंपर प्रभाव पड़ता है, और जिसकी व्याख्या अपेक्षित है। श्री गांधी व्यवसायी वर्गके अपने मित्रोंको बतलायेंगे कि आठ वर्षोंके संघर्षसे उनको क्या मिला है। श्री गांधीने डर्बनमें कहा था कि सभीको तो कोई भी व्यक्ति सन्तुष्ट नहीं कर सकता। मैं तो कहूँगा कि श्री गांधीने उनको एक ऐसी जगह ला पटका है जहाँ उनको अपना संघर्ष फिर नये सिरेसे शुरू करना पड़ेगा। विवाहके प्रश्नके सिलसिले में तो मुसलमानोंका ही नहीं हिन्दुओंका भी कहना है कि उनको कुछ भी नहीं मिला है।