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श्रद्धांजलि : सत्याग्रही शहीदोंको

टिकट और प्रकाशन आदिका जो खर्च होगा, मेरी समझ में वह यहाँसे मिलना चाहिए । मुझे जो धन दिया गया है उसका उपयोग में इसी कार्य में करूंगा।

और अन्तमें मैं यह कहना चाहता हूँ कि समाजका छुटकारा उसके अपने हाथ है और उसका उपाय है सत्याग्रह।

मेरी कामना है कि मेरे हाथों जाने-अनजाने यदि किसी भारतीयका अहित हुआ हो अथवा किसीको कष्ट मिला हो तो वह और भगवान मुझे क्षमा करें।

मैं सत्याग्रही तो हूँ ही और उम्मीद है कि रहूँगा भी; लेकिन गत दिसम्बरमें मुझपर 'गिरमिट' का विशेष प्रभाव पड़ा; यहाँतक कि मुझे गुजराती लोग "गिर- मिटिया" कहने लगे; इसलिए---

मैं हूं

समाजका गिरमिटिया

मोहनदास करमचन्द गांधी

[ गुजरातीसे ]

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (एस० एन० ६०२०) की फोटो-नकलसे ।

३६९. श्रद्धांजलि : सत्याग्रही शहीदोंको

ब्रामफांटीन

जुलाई १५, १९१४

श्री गांधीने कहा, मेरा खयाल है कि जोहानिसबर्गमें मेरे निकटके यूरोपीय मित्रोंमें श्रीमती फिलिप्स सबसे अधिक बुजुर्ग हैं। इसलिए सब भारतीयोंका उन्हें अपनी माताके समान समझना उचित ही है। आज सुबह इन दो स्मारकोंका अनावरण करके श्रीमती फिलिप्सने भारतीयोंकी इस भावनाको सार्थक साबित कर दिया है। श्री गांधीने कहा कि अभी मैंने जो कहा कि श्रीमती फिलिप्सने इस कार्यके लिए बड़ा कष्ट किया है तो यह केवल एक सीधी-सादी सच बात है। परन्तु वास्तवमें कष्टका अर्थ यहाँ शारीरिक कष्ट नहीं है। ऐसा कहने में मेरा हेतु यह है कि इस समय श्रीमती फिलिप्सके हृदय में भी उतना ही दुःख हो रहा है जितना कि किसी भी भारतीयको । इस अवसरपर उन्होंने जो हार्दिक और उदात्त भाव प्रकट किये हैं, मुझे आशा है कि, वे यहाँ उपस्थित हर मनुष्यके हृदयमें अंकित हो जायेंगे। व्यक्तिगत रूपसे में अपनी इस प्यारी बहनके बारेमें बात करते कभी नहीं अघाया हूँ, जो श्रीमती फिलिप्सके लिए तो बेटी और मेरे लिए बहिनके समान थीं। इसी प्रकार में प्यारे भाई नागप्पनके बारेमें भी कहता रहा हूँ।

१. जुलाई १५ को ११॥ बजे दिनमें वैमफांटीनके कब्रिस्तानमें नागप्पन और वलिअम्माके सम्मानमें उनकी कत्रोंपर स्मृति-शिलाओंकी स्थापनाका समारोह हुआ जिसमें गांधीजी उपस्थित थे। श्रीमती कस्तूरबा, कुमारी श्लेसिन, और श्रीमती पोलक भी उपस्थित थीं। यूरोपीय समितिके अध्यक्ष रेवरेंड सी० फिलिप्सकी पत्नी श्रीमती फिलिप्स द्वारा स्मृति-शिलाओं के अनावरणके बाद गांधीजीने भाषण किया ।