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पत्र : दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको

अधिक फिलहाल मिल नहीं सकता। इसीसे मेरा आग्रह है कि जो मिला है उसे सँभाल कर रखना चाहिए और यदि उसमें से कुछ सरकार वापस ले तो उसके विरुद्ध संघर्ष करना चाहिए। समझौतेका जो अर्थ हम करते हैं, अथवा यों कहिए मैं करता हूँ, यदि सरकार अथवा अदालत उसका विपरीत अर्थ करे, और सरकार उस अर्थमें संशोधन करने से इनकार कर दे तो संघर्षका समुचित कारण उपस्थित हो जायेगा तथा सरकार- पर वचन-भंग करनेका आरोप लगेगा।

फिलहाल सबसे बड़ी कठिनाई व्यापारी परवाना अधिनियमके सम्बन्धमें होगी। उसमें भी जहाँ संघ-सरकारका शासन है वहाँ हमें अधिक राहत प्राप्त हो सकेगी। लेकिन जहाँ परवाने नगरपालिकाके हाथमें हैं वहाँ बहुत दिक्कत होगी। इसका एक ही उपाय है और वह यह कि जहाँ-जहाँ परवाने छीने जायें वहाँ-वहाँ संघर्ष करें, अदा- लतोंमें अपील करें, सरकारको प्रार्थनापत्र दें तथा सभाएँ करके विरोध में प्रस्ताव पास किये जायें। फिर भी यदि कोई सुनवाई न हो तो सत्याग्रह ही एक उपाय बच जायेगा। परवानोंको लेकर सत्याग्रह बड़ी आसानीसे किया जा सकता है । फेरीवाले भी हिम्मत कर लें तो परवानोंसे सम्बन्धित संघर्ष थोड़ा-बहुत सफल हो सकता है। सम्भव है कि व्यापारियोंको कुछ काल तक दुःख सहन करने पड़ें। मुझे उम्मीद है, वे संकटकी घड़ी में अपने कर्त्तव्यका पालन करनेसे नहीं चूकेंगे। हमें व्यापार करनेके सम्बन्ध में पूरी स्वतन्त्रताकी माँग करनी चाहिए और वह हमें मिलनी चाहिए। [यह सब कुछ व्यापारियोंपर निर्भर करता है।

ट्रान्सवालका स्वर्ण-कानून बहुत कष्टदायी है। जो व्यक्ति विभिन्न स्थानों में इस समय व्यापार कर रहे हैं, समझौते में उनके व्यापार करते रहनेकी व्यवस्था है। वे उन्हीं नगरों में अपनी दूकानोंकी जगह बदलते रह सकते हैं लेकिन दूसरे नगरोंमें नहीं जा सकते । 'वर्तमान अधिकारों" की धारामें यह बात आ जाती है। सरकार यदि इससे कम दे तो समझौता भंग हुआ माना जायेगा। इससे अधिक लेनेके लिए अलगसे मेहनत करनी पड़ेगी और वह भी मेरे विचारसे फिलहाल एक दम नहीं। हमें इस बातका बहुत ध्यान रखना पड़ेगा कि हमें अन्धकारमें रखकर कहीं इससे सम्बन्धित कोई कठोर कानून न बन जाये । स्वर्ण-कानूनको लेकर भी यदि बहुत अत्याचार हो तो सत्याग्रह आसानीसे छेड़ा जा सकता है।

मुझे फिलहाल ऐसी स्थिति दिखाई नहीं पड़ती कि हम ट्रान्सवालके १८८५ के कानूनके सम्बन्धमें कुछ कर सकें।

विवाहके प्रश्नको लेकर हमें जो कुछ मिला है अभी उससे अधिक मिलना सम्भव नहीं है। इसके लिए प्रयत्न करना, दूसरे अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में खलल डालनेके समान है। अभी जो कानून बना है, दूसरी जगह उससे अच्छा कानून नहीं है।

मताधिकार अथवा भारतसे आनेवाले भारतीयोंके लिए प्रवेशाधिकारके सम्बन्धमें संघर्ष करनेकी हमें आवश्यकता नहीं। मेरा विचार है, हमें फिलहाल इसी बातसे सन्तोष करना होगा कि कानूनसे यह कालिख पुछ गई।

१. देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३९१ ।