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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

जब-जब दुःख पड़ेंगे तब-तब धीरजके साथ उनके विरुद्ध संघर्ष करना पड़ेगा । स्वार्थ अन्धे होकर तथा दुर्बलतावश यदि भारतीय दुःखोंसे नहीं जूझेंगे तो दुःख उन्हें एक न एक दिन अवश्य घेर लेंगे।

यदि नेतागण स्वार्थी-लोभी, आलसी, झूठे और विषय-भोगी हों तो आम जनता कभी भी उन्नति नहीं कर सकती। इसी प्रकार अगर जनता पिछड़ी हुई हो तो दोष इसमें नेताओंका माना जायेगा, और वे ही पापके भागी भी होंगे।

बम्बईसे आनेवाले भारतीय, कलकत्ता तथा मद्रासके निवासी भारतीयोंके प्रति बहुधा बेरुखी और उदासीनताका भाव प्रकट करते हैं। अभी तक अपनी भाषामें 'कोलचा' शब्दका प्रयोग होता है। ऐसा व्यवहार भयानक है और यदि इसका अन्त न हुआ तो इससे समाजको कष्ट होगा। बम्बईवाले यह तो जानते ही हैं कि कलकत्ता तथा मद्रासके भाई उनसे कहीं अधिक हैं। इसलिए स्वार्थको देखते हुए भी कलकतिया तथा मद्रासी भाइयोंके प्रति हमें मंत्रीका भाव प्रदर्शित करना जरूरी है।

सभी भारतीय उपनिवेशमें जन्मे भारतीयोंका तिरस्कार करते हैं। इसे मैं उनकी भूल मानता रहा हूँ और आज भी मानता हूँ । उपनिवेशमें जन्में भारतीयों में दोष हैं, लेकिन दोष किसमें नहीं हैं ? उनमें गुण भी बहुत हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि सत्याग्रहकी लड़ाई इस देश में जन्मे भारतीयोंके कारण ही चमकी है। यहीं पैदा हुए अनेक भारतीय और स्त्रियाँ जेल गये हैं। मुझे पूरा विश्वास है और मेरा ऐसा अनुभव है कि उपनिवेशमें जन्में शिक्षित और अशिक्षित भारतीयोंको उत्तेजन देकर समाज पुण्य कमायेगा और आगे जाकर इसका उसे फल मिलेगा।

हम लोग बहुत गन्दे हैं और पैसेके लोभसे इतनी नीचताका व्यवहार करते हैं कि गोरी प्रजा खीझ उठती है, इसमें उनका दोष नहीं है। यदि नेतागण प्रयत्न करें तो जो गन्दगी देखने आती है वह दूर हो सकती है। एक-एक कोठरीमें अनेक व्यक्ति सोते हैं। उसीमें अनाज और मेवा आदि रखते हैं। कोठरीको कभी साफ नहीं करते। पाखाने भी बहुत ही गन्दे रहते हैं। चारपाइयोंको कभी धूपमें नहीं डालते, खिड़कियाँ नहीं खोलते, धूल नहीं झाड़ते [और ] एक ही कोठरीमें सोते, भोजन पकाते, नहाते व बैठते हैं. -यह स्थिति करुणाजनक है। इससे हम इसी संसारको नरक बना डालते हैं। इस स्थिति में परिवर्तन होना ही चाहिए।

समाजमें सोनेके तस्कर व्यापारका अपराध बढ़ता जाता है। कुछ भारतीय एकदम धनवान बननेके लिए उतावले हो रहे हैं। वे [स्वयं ] कष्ट उठायेंगे और समस्त समाज पर कलंकका टीका लगायेंगे। मैं कामना करता हूँ कि वे अपने ऊपर अंकुश लगायें ।

तमिल और कलकतिया भारतीयोंकी भाँति गुजराती भी शराब पीनेकी बुरी आदतके गुलाम हो गये हैं। जो भारतीय उन्हें इससे उबार लेगा वह बहुत बड़ा पुण्य- कार्य करेगा। यदि व्यापारी भाई चाहें तो उनका इन दयनीय [और ] अपंग भारतीयोंपर अच्छा प्रभाव पड़ सकता है।

मैं यह मानता हूँ कि जो समझौता हुआ है वह हमारी स्वतन्त्रताका अधिकार-पत्र है। इससे हमें जितना प्राप्त हुआ है उससे कम तो हम ले नहीं सकते थे और उससे