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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उबले अंडे और अन्य बहुत-सी ऐसी स्वादिष्ट चीजें ले आया जो एक भूख आदमीको ललचा सकती थीं।

उन्हें लेनेसे इनकार करना हद दर्जेकी कृतघ्नता मालूम पड़ती थी, परन्तु मैं अपनी प्रतिज्ञापर दृढ़ रहा और मैंने स्टेशन मास्टरको समझाकर बताया कि मैं कदाचित् ही अंडे खाता हूँ और जो दूध एवं अन्य वस्तुएँ आप लाये हैं उनका उपभोग नहीं कर सकता, क्योंकि मुझे अपने साथ वही बरताव स्वीकार करना है जो अन्य साधारण लोगोंके साथ होता है। ऐसा लगा कि उन्हें इससे ठेस पहुँची और इसके लिए मुझे खेद भी हुआ, परन्तु मेरे मन में अकृतज्ञताकी भावना नहीं थी। आशा करता हूँ कि वे दयावान सज्जन भी मेरा भाव समझ गये होंगे।

एक अन्य स्थानपर एक होटलके मालिकने मुझसे कहा- - "आप काँप रहे हैं । मेरे होटल में आइये, मैं आपको जगह दूंगा।" मैंने उसे धन्यवाद दिया, किन्तु उसकी बात नहीं मानी और अपने साथियोंकी ओर इशारा करते हुए कहा, "वे भी ठंड महसूस कर रहे हैं और काँप रहे हैं" उसने कहा, मगर आप यह क्यों समझ रहे हैं कि मैं आपको बरामदे रखूंगा; मैं आपको एक कमरा दूंगा।" मैं उसका दयापूर्ण प्रस्ताव न माननेके लिए मजबूर था।

एक अन्य स्थानपर हम पहुँचे, वहाँ एक महिलाने जो एक छोटा-सा स्टोर चला रही थी, जो-कुछ भी उसके पास था हमारे सामन रख दिया। मेरे समझाने-बुझाने- पर भी वह अपनी ही कहती रही। उसने कहा --" यद्यपि, आप सब भारतीय हैं, आप कष्ट सहन कर रहे हैं और मेरी समझमें मुझमें मदद करनेकी सहानुभूतिपूर्ण पुरानी ब्रिटिश-भावना पर्याप्त मात्रामें शेष है।" चार्ल्स टाउन और न्यूकैसिलमें पूरे समाजने हमारी और हमने उनकी मदद की। किसी प्रकारकी बदमजगी नहीं हुई, न किसी प्रकारका दुराव-छिपाव ही रहा।

कूच शुरू करने से पहले मैंने लोगोंको समझाया कि यदि आप अपना बोझ दूसरोंके कंघोंपर न रखकर स्वावलम्बी रहे तो विजय आपकी ही होगी। इसे समझने में उन्हें कुछ समय लगा, परन्तु इसी शर्तपर मैंने उन्हें अपने साथ आनेकी अनुमति दी । इस तरह हमारी सेना अपने मार्गपर दृढ़ रही। हम सुबह सूर्योदयसे पूर्व उठ खड़े होते और दिनके खानेसे पहले अधिकसे-अधिक जितना रास्ता तय कर सकते, तय करते। उसके बाद खुराक में थोड़ी-सी रोटी और चीनी लेनेके लिए ठहर जाते। आप मानेंगे कि यह एक आश्चर्यजनक बात है कि दो हजार लोगोंने बिना कानून भंग किये, बिना कुछ चुराये या उपद्रव किये यात्रा की।

उन्होंने यह भी कहा कि संघर्षके उन दिनोंमें व्यक्तिगत रूपसे मुझे तथा उनके परिवारको जैसा व्यवहार प्राप्त हुआ इसकी प्रशंसाके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।

[ अंग्रेजीसे ]

ट्रान्सवाल लीडर, १५-७-१९१४