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भेंट: 'ट्रान्सवाल लोडर' के प्रतिनिधिको

किया है। उन्होंने किसी भी तरहका कोई मानसिक दुराव नहीं रखा। जनरल स्मट्स की यही एक इच्छा थी कि कोई भी गलतफहमी न रहने पाये और इसीलिए उन्होंने अत्यधिक व्यस्त रहने पर भी मुझे हर बार खुशीसे भेंट दी और प्रत्येक स्थितिमें भारतीय दृष्टिकोणको समझनेकी कोशिश की।

और मैं यह निश्चित रूपसे महसूस करता हूँ कि विरोधी दलने पूरे मनसे जो सहयोग दिया उससे बढ़कर और कुछ नहीं हो सकता था।

वास्तव में सिनेट और विधान सभा दोनों में हुई बहसकी सम्पूर्ण भावना, नेटालकी विसंवादी टिप्पणी के बावजूद ऊँचे शाही ढंगकी थी। और यदि फाजिल आन्दोलनसे मेरे ही देशवासियों अथवा यूरोपीयोंने वातावरण दूषित करके समझौते के अच्छे प्रभावको नष्ट कर दिया तो यह बड़े खेदकी बात होगी। प्रवास और ऐसे ही अन्य मामलों में समझौता यूरोपीयोंकी सभी उचित माँगोंका ध्यान रखते हुए उस मुद्देको पूरी तरह स्वीकार करता है, जिसके लिए भारतीय पिछले आठ वर्षोंसे संघर्ष और कष्ट सहन करते आ रहे थे। मुझे अपनी पूरी यात्रामें जो यूरोपीय सज्जन मिले उनका रुख आदर्श था। उनमें से बहुतोंको इस समस्याके बारेमें कुछ भी नहीं मालूम था और वे लोग मुझे भी बिलकुल नहीं जानते थे।

[संवाददाता:] क्या संघर्ष, वास्तवमें, समाप्त-प्राय है--क्या भारतीय यहाँ राज-नीतक समानताके लिए, अलबत्ता वैधानिक ढंगसे, संघष नहीं करेंगे?

हमने कभी भी राजनीतिक समानताकी माँग नहीं की। हमें उसके मिलनेकी आशा नहीं है।

आप मताधिकार चाहते हैं?

नहीं; उस सम्बन्ध में मेरा विचार है कि राजनीतिक मताधिकारका प्रश्न बिलकुल अलग छोड़ दिया जाये; और मेरी दृढ़ धारणा है कि सत्याग्रह मताधिकारसे सहस्र-गुना बढ़कर है। मैंने कभी मताधिकारकी माँग नहीं की। मैंने हमेशा जिस बातपर जोर दिया वह है जातीय भेदभावको दूर करना । मैंने समानतापर जोर नहीं दिया।

इसके बाद श्री गांधीने अपने जीवनकी कुछ असाधारण घटनाएँ सुनाई; विशेषकर उन्होंने पिछले वर्ष नवम्बरमें भारतीय सत्याग्रहियों द्वारा ट्रान्सवालके कूचके बारेमें बताया और कहा कि दक्षिण आफ्रिकामें मुझे इसी घटनाने आश्चर्य-चकित किया है।

उस कूचके कारण मैंने मानव प्रकृतिको और अधिक प्यार करना सीखा और इसीके कारण यह बात मेरी समझमें आई कि अगर मानवीय भावना विकसित है तो फिर लोग चाहे भारतके हों चाहे यूरोपके, धरती पूर्वकी हो चाहे पश्चिमकी, मनका तार एक ही स्वरमें झंकृत होगा।

कूच सम्बन्धी अपने और भी अनुभवोंकी चर्चा करते हुए श्री गांधीने उस समय जो कठिनाइयाँ आई थीं उनके बारेमें तो कुछ नहीं कहा, ऐसा प्रतीत होता था जैसे कि वे उन्हें भूल ही गये हों; किन्तु अज्ञात व्यक्तियोंने दयाभावसे जो छोटे-छोटे कार्य किये थे उन्हें याद किया और बताया कि एक स्टेशन मास्टर मेरे लिए एक ग्लास दूध, दो एक