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भाषण: विदाई-भोजमें

बातें हैं। संघ-भरमें परवाना कानून भी अभी मौजूद है और उनमें भी यही दोष है। ऐसा ही एक और मामला है, जिसे खासकर उपनिवेशमें जन्मे भारतीय समझ या पसन्द नहीं कर सकते; उन्हें अपने-अपने प्रान्तको सीमाके अन्दर ही रहना पड़ता है। यूरोपीयोंके लिए प्रान्तोंके बीच आने-जानेकी तथा अन्तर्प्रवासकी स्वतन्त्रता है, किन्तु भारतीयोंको अपने ही प्रान्तों में बँधा रहना पड़ता है। फिर उनकी व्यापारिक गतिविधियोंपर अनुचित नियन्त्रण है। जमीन-जायदाद रख सकनेकी ट्रान्सवालमें मनाही है जो अपमानजनक है और ये सब चीजें भारतीयोंको हर प्रकारके अवांछनीय तरीकोंकी ओर ले जाती हैं। ये सब नियन्त्रण हटाने होंगे। परन्तु मेरे विचारमें इसके लिए पर्याप्त धैर्यका उपयोग करना होगा। अब हमारे पास समय है और लहजेमें आश्चर्यजनक तबदीली आ गई है। यहाँ केप टाउनमें मुझे बताया गया है, और मुझे उसपर पूरा विश्वास है कि श्री ऐन्ड्रयूजके व्यक्तित्वका प्रभाव उन सब राजनयिकों और प्रमुख व्यक्तियोंपर पड़ा है जिनसे वे मिले थे। वे आये और थोड़े ही समय बाद चले गये, परन्तु निश्चय ही उन्होंने उन लोगोंमें, जिनसे वे मिले, उस साम्राज्यके प्रति कर्त्तव्यकी भावनाको, उभारा, जिसके वे सदस्य हैं। परन्तु कुछ भी हो, चाहे किन्हीं भी परिस्थितियोंके कारण वह स्वस्थ लहजा आया हो, वह आया अवश्य है। मैंने उसे उन यूरोपीय मित्रोंमें पाया जिनसे मैं केप टाउनमें मिला; डर्बनमें उसे मैंने और भी सम्पूर्ण रूपमें देखा और इस बार मुझे रेलगाड़ी में बहुत-से ऐसे यूरोपीयोंसे मिलनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ जो सर्वथा अपरिचित थे। उन्होंने मुस्कराते हुए आगे बढ़कर मुझे "इस बड़ी विजय' पर -- बकौल उनके - बधाई दी। वह स्वस्थ लहजा मैंने हर जगह पाया। मैंने यूरोपीय मित्रोंसे कहा कि वे यूरोपीय समितिके जरिये या अन्य जरियोंसे उस कार्य-विधिको जारी रखें, मेरे देशभाइयोंको मदद दें और साथ ही उन्हें यह सहानुभूति भी दें ताकि वे अपनी मुक्तिके लिए प्रयत्न कर सकें और उसे प्राप्त कर सकें।

मैं अपने देशभाइयोंसे कहूँगा कि आप इन्तजार करें और समझौतेका पालन करें। मेरे विचारमें परिस्थितियों आदिका खयाल करते हुए इस समझौतेसे अधिकको आशा नहीं की जा सकती थी। मुझे आशा है, आप देखेंगे कि हमारे यूरोपीय मित्रोंके सहयोगसे जो वायदा किया गया है वह बराबर पूरा किया जा रहा है; मौजूदा कानूनोंको न्याय- पूर्वक लागू किया जा रहा है; और निहित अधिकारोंको प्रशासनमें मान्यता मिलती है और जब ये सब बातें पूरी तरह रूढ़ हो जायें तब यदि आप यूरोपीय लोकमतको अपने अनुकूल बनाकर तत्कालीन सरकारके लिए यह सम्भव कर देते हैं कि वह वे दूसरे अधिकार भी आपको वापस दे दे जो आपसे छोने गये हैं; तो फिर मैं नहीं समझता कि भविष्यमें डरका कोई कारण रह जाता है। मैं समझता हूँ कि यदि परस्पर सहयोग और सद्भावना रहे तथा दोनों ओरसे समुचित प्रतिक्रिया होती रहे तो भारतीय समाज उस सरकार या किसी अन्य सरकारके लिए कमजोरीका कारण कभी भी नहीं बन सकता। बल्कि मुझे अपने देशभाइयोंपर पूरा भरोसा है कि यदि उनसे अच्छा व्यवहार