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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ही पार कर पाये होंगे। वे भी देशकी वेदीपर चढ़ गये। परन्तु श्रीमती गांधी और में दोनों आप लोगोंके सामने जीवित खड़े हैं। मैंने और श्रीमती गांधीने तो गोया मंचपर प्रसिद्धि और सराहनाका आनन्द लेते हुए अपना काम किया, किन्तु उन्होंने नेपथ्यमें अज्ञात रहकर अपना काम किया। उन्हें यह भी पता नहीं था कि वे कहाँ जा रहे हैं, वे केवल इतना ही जानते थे कि वे जो कुछ भी कर रहे हैं वह ठीक और उचित है; अतः यदि किसीकी प्रशंसा करनी ही हो तो वे तीन, जो नहीं रहे, इनमें सर्वाधिक प्रशंसाके पात्र हैं। आप लोग हरबर्तासंहके नामसे भी परिचित हैं। मुझे उनके साथ जेलमें रहनेका सौभाग्य मिला था। हरबर्तासंह ७५ सालके थे। वे भूतपूर्व गिरमिटिया भारतीय थे और जब मैंने उनसे पूछा कि आप यहाँ क्यों आये हैं तब उस बहादुर व्यक्तिने जवाब दिया कि "मैं यहाँ अपनी मृत्यु खोजने आया हूँ। मुझे मरनेकी परवाह नहीं है। मैं जानता हूँ, आप किसलिए लड़ रहे हैं। आपको तीन पौंडी कर नहीं देना पड़ता, परन्तु मेरे साथी भूतपूर्व गिरमिटिया भारतीयोंको वह कर देना पड़ता है। अगर मैं यहाँ मर जाऊँ तो मेरे लिए उससे अधिक शानदार मौत और कौनसी हो सकती है ? " उन्हें यह मौत डर्बनकी जेलमें मिली। इसमें कुछ आश्चर्य नहीं कि सत्याग्रहने दक्षिण आफ्रिकाको चेतनाको जागृत और प्रोत्साहित किया; और इसलिए जब-कभी में बोला हूँ, मैंने कहा है कि यदि भारतीय समाजने इस समझौते से कुछ पाया है तो वह सत्याग्रहके जरिये । किन्तु यह भी निश्चित है कि जो कुछ मिला है वह केवल सत्याग्रहसे हो नहीं मिला। मेरा खयाल है कि जो तार आज पढ़कर सुनाया गया है, उससे स्पष्ट है कि हमें महान् वाइसराय लॉर्ड हार्डिजको भी उनके महान् प्रयत्नोंके लिए धन्यवाद देना चाहिए। मैं समझता हूँ कि साम्राज्यीय सरकार भी धन्यवादको पात्र है जो पिछले कुछ वर्षोंसे समय-समयपर जनरल बोथाको खरीतेपर-खरीता भेजती रही और उनसे माँग करती रही कि वे उसका दृष्टिकोण -- साम्राज्यीय दृष्टिकोण -- समझें। हमें संघ सरकारको भी धन्यवाद देना है, क्योंकि उसने इस बार न्याय-भावनाको अपनाया है। हमें संसदके दोनों सदनोंके उन उदारमना सदस्योंको भी धन्यवाद देना है, जिन्होंने वे ऐतिहासिक भाषण दिये और समझौता करवाया । अन्तमें हमें विरोधी दलको भी धन्यवाद देना है, जिसने नेटाली सदस्योंके असहमति-सूचक रुखके बावजूद विधेयक पास करवानेमें सर- कारका साथ दिया। इन सब बातोंपर विचार करें तो समझमें आ जाता है कि जो सेवाएँ मैंने और श्रीमती गांधीने की होंगी वे बहुत मामूली ही हैं। हम तो उन तमाम उपकरणोंमें से, जिनके जरिये समझौता हुआ, दो उपकरण-मात्र थे । और वह समझौता क्या था ? मेरी नम्र रायमें यदि हम इस बातपर ध्यानसे विचार करें तो समझौतेका महत्व उन चीजोंमें नहीं जो हमें मिली हैं, बल्कि उन दुःखों और कष्टों में है जो एक लम्ब अरसे तक उठाये गये, और जो इन वस्तुओंकी उपलब्धिके लिए आवश्यक भी थे । यदि कोई बाहरी व्यक्ति यहाँ आये और उसे मालूम हो कि दो साधारण व्यक्तियोंको इसलिए दावत दी जा रही है कि उन्होंने एक ऐसे समझौतेमें छोटा-सा