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३६६. भाषण : विदाई-भोजमें'

जोहानिसबर्ग

जुलाई १४, १९१४

श्री गांधीने कहा कि आपने, अथवा कहिए परिस्थितियोंने, मुझे आज बड़े असमंजसकी स्थितिमें डाल दिया है। जोहानिसबर्गमें जो लोग मुझे जानते हैं उन्होंने ऐसे समारोहोंमें मुझे अबतक एक मेजबानके रूपमें देखा है। परन्तु आज दुर्भाग्य से में मेहमान बना हुआ हूँ और समझमें नहीं आता कि मैं इस कर्त्तव्यको कैसे निभा सकूँगा। मेजबानके रूपमें मैं समझता हूँ कि मैं अपने लम्बे अनुभवके कारण उसके उपयुक्त था और यदि में अत्यन्त नम्रताके साथ कह सकूँ तो कहूँगा कि में उसे बखूबी निभाता था; परन्तु मौजूदा स्थिति मेरे लिए और श्रीमती गांधीके लिए सर्वथा नई है और मैं बहुत डर रहा हूँ कि जो नया कर्त्तव्य मुझपर डाला गया है, उसे मैं कैसे निभाऊँगा । श्रीमती गांधीके और मेरे बारेमें, हमारी निष्ठा और आत्मोत्सर्ग एवं अन्य अनेक बातोंके सम्बन्धमें भी बहुत कुछ कहा गया है। मेरे धर्ममें एक हिदायत है, और मैं समझता हूँ कि वह सभी धर्मोके लिए सत्य है। हिदायत यह है कि जब किसी व्यक्तिकी तारीफ हो रही हो तब उस व्यक्तिको उस जगहसे दूर चले जाना चाहिए, और यदि वह वैसा न कर सके तो उसे अपने कान बन्द कर लेने चाहिए; और यदि वह इन चीजोंमें से एकको भी न कर सके तो उसे वह संब-कुछ जो उसके सम्बन्धमें कहा गया हो, उस सर्वशक्तिमान देवो तत्त्वको समर्पित कर देना चाहिए जो विश्वके प्रत्येक जीव और पदार्थमें व्याप्त है। मुझे आशा है कि श्रीमती गांधी और मुझे ऐसी शक्ति प्राप्त होगी जिससे हम, जो-कुछ हमारे बारेमें आज कहा गया है, वह सब उस देवी तत्त्वको समर्पित कर सकेंगे।

हमें जो मूल्यवान उपहार दिये गये हैं, उनमें सबसे अधिक मूल्यवान हैं वे चार लड़के । शायद श्री चैमने आपको भारतमें गोद लेनेके कानूनके बारेमें तथा श्री एवं श्रीमती नायडूने जो कि पुराने जेलवासी हैं, क्या किया है, इसके बारेमें कुछ बता सकेंगे। हम गोद लेनेकी रस्म पूरी कर चुके हैं और वे अपने चार बच्चोंपर अपना अधिकार त्याग चुके हैं तथा उन्होंने उनकी जिम्मेदारी हमारे (श्री और श्रीमती गांधीके) हाथों

१. कैलेनबैक, कस्तूरबा और गांधीजीको मैसॉनिक हॉल, जेप्पी स्ट्रीटमें एक विदाई-भोज दिया गया था। इस अवसरपर उन्हें ब्रिटिश भारतीय संघ, चीनी संघ, तमिल कल्याण समिति, ट्रान्सवाल भारतीय महिला संघ तथा गुजराती, मुस्लिम तथा पारसी समाजोंकी ओरसे अभिनन्दनपत्र भी भेंट किये गये थे। समारोहमें एक उल्लेखनीय घटना घटी थी। अपने ४ पुत्र गांधीजीको अर्पित करते हुए सी० के० टी० नायडूने कहा--" मैं और पत्नी अपने चार पुत्रोंको भारतकी सेवामें समर्पित करते हुए गौरवका अनुभव करते हैं।