[ डर्बन
जुलाई १२, १९१४]
आप , मुसलमान, पारसी, अथवा ईसाई कुछ भी क्यों न हों--भारतीय होनेके नाते मिलकर काम करें। कौमी भेद-भावको भुला दें और अपने दिलमें कभी संकीर्णता न लायें। [भारतीय] समाजको जो सम्मान हासिल हुआ है वह तभी कायम रखा जा सकेगा, जब आप सभी मिल-जुलकर काम करेंगे। दक्षिण आफ्रिका में रहते हुए यदि मुझसे किसीकी कोई हानि हुई हो तो वे मुझे क्षमा करें।
[ गुजरातीसे [
इंडियन ओपिनियन, २२-७-१९१४
[जुलाई १३, १९१४]
श्री गांधी ने..कहा, आखिरकार एक ऐसा समझौता तो हो गया जो दोनों पक्षोंके लिए सम्मानपूर्ण और सत्याग्रहियोंकी प्रतिष्ठाके अनुरूप है, क्योंकि सरकारने वे सारीकी-सारी बातें मान ली हैं जो पिछले वर्ष वार्ता बन्द होनेके पहले श्री काछलियाने अपने पत्र में उसके सामने रखी थी। सरकारसे कुछ और ज्यादा करनेके लिए कहना सत्याग्रहियों की ओरसे विश्वासघात होता, जिसमें मैं कतई साथ नहीं दे सकता था।
[ अंग्रेजीसे ]
ट्रान्सवाल लीडर, १४-७-१९१४
१. गांधीजीने डवनसे जोहानिसबर्ग जाते समय यह सन्देश दिया था।
२. गांधीजी और कस्तूरबाके पार्क स्टेशन पहुँचनेपर भारतीयोंके विशाल समुदायने उनका स्वागत किया था। उनके प्रशंसकोंने एक जुल्स बनाकर बड़े उछाहसे वह गाड़ी खींची जिसमें दोनों बैठे थे ।
गांधीजीने बादमें 'सोसाइटी थियेटर' में आयोजित एक सभामें भाषण किया ।
३. देखिए “पत्र : गृह-सचिवको ", पृष्ठ १७७-८० ।