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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अतः अपने दुःखोंको दूर करनेके लिए आप लोगोंने पिछले वर्ष जैसे प्रयत्न किये वैसे ही प्रयत्न हर संकटके समय अपनाये जाने चाहिए। इसमें मेरी या अन्य नेताओंकी उपस्थिति आवश्यक नहीं है। संकटके समयमें मेरे जैसे लोगोंकी तलाश करनेकी अपेक्षा सत्याग्रहकी तलाश की जानी चाहिए; उसमें आपकी विजय अवश्यम्भावी है।

अब मैं आपसे कुछ और निवेदन करूंगा। वे भारतीय जो इस देश में पैदा हुए हैं उनकी जन्मभूमि तो यही है। दूसरे भारतीयोंकी अपेक्षा उनका यहाँ विशेष अधिकार है। उनका भविष्य भी इसी भूमिसे जुड़ा है। मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि वे सावधान रहें। वकील बनने या दूसरे दफ्तरोंको भरनेकी अपेक्षा आप अपना ध्यान जमीनकी ओर ज्यादा लगाएँ। और एक समाजके नाते आपको जब-जब सत्ताका सामना करना पड़े तब-तब आप उसी हथियारको पुनः हाथमें लें जिसका प्रयोग आप पिछले आठ वर्षोंसे करते आये हैं।

गिरमिटिया भाई-बहनो, आप लोगोंकी हालत बहुत खराब है। मुझे अनेक लोगोंने कहा कि तीन पौंडी करके न रहनेसे लाभ ? ये बचे हुए पैसे तो कलाल या सुनारके यहाँ चले जायेंगे। ये लोग इन दो स्थानोंपर लूट लिये जायेंगे। यह बात सच है। सुनारोंको तो मैं कह सकता हूँ कि भाइयो ! यह लूटनेका धन्धा छोड़ दो। इसका परिणाम ठीक नहीं है। तुम लोग अपने ही भाइयोंकी दशा हीन न बनाओ। सोनमें तांबा या पीतल मिलाकर अपने ही भाइयोंको मत लूटो। पर कलालसे कुछ नहीं कह सकता। वह बात आप लोगोंसे ही कहूँगा। यदि आप लोग नशा न करनेकी प्रतिज्ञा कर लें तो कलालोंको अपनी दूकानें बन्द करनी पड़ेंगी। मैंने अनेक भाई-बहनोंको कई बार नशेमें चूर आम रास्तोंपर झगड़ते हुए या लड़खड़ाते चलते देखा है। ऐसे समय मैं सोचता हूँ, हाय मेरे भाई-बहनोंकी यह दशा ! और शराबकी इसी बुरी लतके कारण हम लोग इस देश में कितने तुच्छ हो गये हैं। हमने अपनेपनसे बेखबर हो दुराचार और अनीतिके मार्गको पकड़ लिया है। हमें यह स्थिति खत्म करनी चाहिए और इसके लिए आगे आना चाहिए हमारे नौजवानोंको। उन्हें चाहिए कि जो नासमझ हैं उन्हें वे समझाएँ, उनसे अनुनय-विनय करें, आजिजीके साथ शराब न पीनेके लिए कहें। उन्हें चाहिए कि वे कलालीके पास कहीं खड़े रहें और वहाँ जानेवाले भारतीयोंको वापस लौटाएँ। ऐसा करने में उन्हें अपमान सहन करना होगा; मार भी खानी होगी। परन्तु यह सब सहन करना चाहिए। यदि ऐसा किया गया तो अवश्य ही इस बुरी लतका अन्त हो जायेगा। और आप सबकी स्थिति सुधरेगी । यहाँके गोरे निवासी भी हमें सम्मानकी नजरसे देखने लगेंगे। लोगोंकी माली हालत भी सुधरेगी और सन्मार्गका अनुसरण भी होगा। मेरी आपसे याचना है कि आप लोग इस लतको छोड़ दें।

आप सबका मेरे प्रति जो स्नेह है उसे मैं कभी नहीं भूलूंगा और भारतमें आपके प्रति मेरा जो फर्ज है उसका सदा ध्यान रखूंगा। मैं तो आप सभीका आजीवन गिरमिटिया हूँ अतः अपने हृदयसे आपको कभी दूर नहीं कर सकूँगा। आप भी मुझे न भुलायें ।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, २२-७-१९१४