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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(७) वही अवधान-धारा केप व ट्रान्सवालके भारतीयोंके नेटालकी वर्तमान शिक्षा-कसौटीको पास कर लेनेपर नेटालमें प्रवेश कर सकनेके अधिकारको, और इसी प्रकार नेटाल व ट्रान्सवालके भारतीयोंके केपकी शिक्षा-कसौटीको पास कर लेनेपर केपमें प्रवेश कर सकनेके अधिकारको सीमित करती है।

(८) वही अवधान धारा दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे भारतीयों द्वारा केपके वर्तमान कानूनके अधीन उसमें प्रवेश कर सकनेके उनके अधिकारका अपहरण करती है।

यदि हम केवल सत्याग्रहके दृष्टिकोणसे विधेयकपर आगे विचार करते हैं तो उसमें निम्नलिखित त्रुटियां भी दिखाई पड़ती हैं :

(१) खण्ड ४ के उपखण्ड १ की उपधारा (क) का मन्शा फ्री स्टेटमें शिक्षा सम्बन्धी परीक्षा पास कर लेनेवाले नये प्रवासियोंके प्रवेशका निषेध करना जान पड़ता है।

(२) यदि विधेयक ऐसे प्रवेशका निषेध न भी करता हो तो भी हर शिक्षित प्रवासीसे वह ऐसा प्रतिज्ञा-पत्र चाहता है, जिसकी आवजक-रूपमें किसी आग्रजकसे अपेक्षा नहीं की जा सकती।

(३) खण्ड ५ की उपधारा (छ) नये प्रवासियोंकी पत्नियों और उनके नाबालिग बच्चों द्वारा अपने पति और पिताके साथ संघमें प्रवेश कर सकनेके अधिकारको स्वीकार नहीं करती।

(४) सर्ल-फैसलेसे भारतीय विवाहों और ऐसे विवाहोंसे उत्पन्न नाबालिग बच्चोंके सम्बन्धमें दक्षिण आफ्रिकाके कानूनोंकी जो श्रुटि सामने आई है, यह विधेयक उसे दूर नहीं करता।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-४-१९१३

१४. नया और पुराना विधेयक

उपर्युक्त विधेयक और १९१२ के उस मसविदेमें जो बादमें निष्फल ठहरा था,[१] अनेक स्थलोंपर विरोध और सामंजस्य पाया जाता है। नये विधेयकका ढांचा १९१२ के विधानसे बहुत भिन्न है। इस विधेयकका खण्ड १, सन् १९१२ के विधेयकके खण्ड ३ के उपखण्ड १ और २ से मिलता-जुलता है, किन्तु पुराने विधेयकके खण्ड ३ के उपखण्ड ३ को नये विधेयकमें प्रशासन प्रणाली एवं प्रशासनका अधिकार-क्षेत्र-दोनों दृष्टियोंसे खण्ड २ के बारह उपखण्डोंमें बढ़ाया और विस्तृत किया गया है। इनमें प्रवासी निकायके सामने अपील करनेके लिए आवश्यक तन्त्रकी व्यवस्था की गई है। इन निकायोंको, आवास सम्बन्धी प्रश्नोंके अतिरिक्त अन्य अपीलोंमें निर्णायक अधिकार प्राप्त रहेंगे,बशर्ते कि इन्हें इसके लिए विधेयककी आम शर्तोंके अनुसार मन्त्रीसे निर्देश उपलब्ध हुए हों। खण्ड ३, जो कानूनी अदालतोंके अधिकार-क्षेत्रसे आवासके अलावा अन्य प्रश्नों-को अलग कर देता है, बिल्कुल नया है।

  1. १.देखिए खण्ड ११, पृष्ठ ५४५-४९ ।