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भाषण : डर्बनकी सभामें

उसे ऐसी परिस्थितियोंमें मत डालिये कि वह घृणित अनैतिकतासे ऊपर न उठ पाये। ऐसा मत समझिये कि उसमें सुधारकी कोई गुंजाइश ही नहीं है; नैतिकताके हर आग्रहको मानने और नैतिकताके ऊँचेसे-ऊँचे स्तर तक उठनेकी क्षमता उसमें मौजूद है।

उनमें जो कमजोरियाँ हैं, उनके लिए उनको पूरा-पूरा दोषी ठहराइए, पर साथ ही कमसे-कम इतना तो मानिये कि उनमें सभी सद्गुणोंकी भी सम्भावना है। इतना मान लेनेपर क्या आप अपने भारतीय कर्मचारियोंके साथ अपने भाइयों-जैसा ही व्यव हार नहीं करेंगे? इतना काफी नहीं कि आप अपने पशुओंकी तरह उनके साथ अच्छा बर्ताव करें। इतना ही पर्याप्त नहीं कि आप उनपर दयाकी दृष्टि रखें; जरूरी यह है कि आप अपनेको मालिकसे कहीं ज्यादा समझें, आप अपने कर्मचारियोंको सहयोगी मनुष्योंके रूपमें देखें, ऐसे एशियाइयोंके रूपमें नहीं जिनसे यूरोपीयोंका कोई नाता ही नहीं। तब, उनका ध्यान रखे जानेपर, कर्मचारी भी क्रमशः और अच्छा रवैया अपनाते जायेंगे। आप अपने कर्मचारियोंकी भौतिक और शारीरिक ही नहीं उनकी नैतिक उन्नतिका भी विवेकपूर्ण ढंगसे ध्यान रखें। आप उनके आचरणपर नजर रखें, उनके बच्चों, उनकी शिक्षा और सफाई आदिका भी ध्यान रखें; और यदि पशुओंकी भाँति उनको एक जगह रख देनेपर वे घृणित, अनैतिकतापूर्ण आचरणके दलदलमें ही फँस जायें तो आपको खुद यह सोचकर ग्लानि होने लगेगी कि आपकी निगरानीमें रहनेवाले लोग उस प्रकारके वातावरणमें रहने के कारण कितने अनैतिक हो गये हैं। यह मत समझिये कि ये लोग चूँकि समाजके निम्नतम वर्गके हैं, इसलिए ये सुधर नहीं सकते। वे आपका हर नैतिकतापूर्ण आग्रह मानेंगे और वे निश्चय ही नैतिकतामें उतना ऊँचा उठकर दिखलायेंगे जितना कि किसी अन्य रंगके मानवके लिए सम्भव है।

[ अंग्रेजीसे ]

नेटाल मर्क्युरी, १४-७-१९१४ और इंडियन ओपिनियन, स्वर्ण अंक, १९१४

३६३. भाषण: डर्बनको सभामें

[जुलाई १२, १९१४]

बहनो और भाइयो,

आज मुझे अपने जीवनका सर्वोत्तम सम्मान प्राप्त हुआ है। आप सबने आज मेरे प्रति जो प्रेम व्यक्त किया है वह अवर्णनीय है । और आप इतने सारे गिरमि- टिया भाई-बहनों को देखकर तो मेरे आनन्दकी सीमा ही नहीं रही है। आप लोगोंने समझौते के सम्बन्धमें अनेक बाते सुनी होंगी; इनमें कुछ झूठ भी हैं। गिरमिटिया बन्धु अपनी गिरमिट पूरी होनेपर अब स्वतन्त्र होकर रह सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं; परन्तु मेरे यहाँसे चले जाने के बाद यदि आप लोग सावधान नहीं रहे और कमजोर होते चले गये तो सरकार उसका लाभ उठाये बिना नहीं रहेगी।

१. इसके बादका विवरण इंडियन ओपिनियनके स्वर्ण अंक, १९१४ से लिया गया है।

२. गिरमिटिया तथा अन्य भारतीयोंकी यह सभा डर्बनके फुटबाल ग्राउंडपर हुई थी ।