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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

और यदि उससे न्याय न मिलता, तो मैं कहता कि जबतक मेरे साथ न्याय नहीं किया जायेगा मैं अन्न-जल ग्रहण किये बिना वहीं रहूँगा। मुझे पूरा भरोसा है कि सत्याग्रह पत्थरसे-पत्थर दिलको भी पिघला देगा। इस सत्यको आप अपने हृदयकी गहराईमें उतार लीजिये । यही सबसे अचूक और सबसे कारगर दवा है। यह रामबाण है।

यदि आप मेरी सलाह माँगे या मुझसे पथ-प्रदर्शन चाहे, तो मैं इतना ही कह सकता हूँ कि यदि आप श्री लैंग्स्टन या अन्य किसी वकीलको फीस नहीं भरना चाहते, तो फीनिक्समें श्री वेस्टके पास जाइये [या श्री छगनलाल गांधीके पास]।" मुझे इसमें तनिक भी शंका नहीं कि यदि आप श्री वेस्ट [या श्री छगनलाल गांधी] की एक ऐसी चिट्ठी लेकर श्री लैंग्स्टनके पास जायेंगे कि आप अपनी गरीबीके कारण वकीलकी फीस देनेकी स्थितिमें नहीं हैं तो श्री लैंग्स्टनके अन्दरकी फीस लेनेवाली भावना चुप हो जायेगी, उनके हृदयकी मानवीयता उभर आयेगी और वे कोई फीस लिये बिना ही आपको कानूनी सलाह दे देंगे। किसी भी कागजपर तबतक दस्तखत मत कीजिये जबतक आप फीनिक्स जाकर सलाह न ले लें और वहाँ आपको दस्तखत करनेकी सलाह न दी जाये। यदि फीनिक्स आपको सलाह न दे या सलाहके लिए एक कौड़ी भी मांगे तो फीनिक्सकी ओर कभी झाँकिये तक नहीं।

अब मैं वेरुलम और आप सभीसे विदा लेता हूँ। मैं यहाँसे कितनी भी दूर क्यों न चला जाऊँ पर यह दृश्य मेरी स्मृतिमें सदा हरा रहेगा। ईश्वर सभी संकटोंमें आपका सहायक रहे। आपका अपना आचरण भी ऐसा रहे कि ईश्वर आपकी सहायताको आ सके।

इसके बाद श्री गांधीने कुछ मध्यम स्वरमें अपने पास बैठे यूरोपीयोंसे कहना शुरू किया। उन्होंने अपने यूरोपीय मित्रोंसे उन भारतीयोंको माफ कर देनेके लिए कहा जिन्होंने उस कठिन समयमें बदलेकी भावनासे चोट की थी। श्री गांधीने कहा कि वे स्वयं बदलेकी ऐसी कार्यवाहीसे कोई सरोकार नहीं रखते, पर जीवनमें ऐसे भी अवसर आते हैं जब व्यक्ति अपने आपेसे बाहर हो जाता है, उसकी पशु-प्रवृत्ति उसपर हावी हो जाती है और वह जिसकी लाठी उसकी भैंसवाली बातमें यकीन करके 'इंटके बदले पत्थर' के हिसापूर्ण सिद्धान्तमें अमल करने लगता है। उन्होंने एक बार फिर अनुरोध किया कि उनको माफ कर देना चाहिए और कहा कि कभी-कभी यूरोपीय मालिक अपने स्वार्थको ज्यादा महत्व देने लगते हैं; उनको यह नहीं भूलना चाहिए कि गिरमिटिया भारतीय भी आखिर इन्सान ही हैं। मालिकोंकी तरह उनकी भी भावनायें हैं। वे पशु तो नहीं हैं; उनमें भी, तो सभी तरहकी कमजोरियाँ और यदि उभरनेका मौका दिया जाये, तो सभी तरहके गुण हैं। श्री गांधीने अपील की कि गिरमिटिया भारतीयोंके लिए साफ-सुथरे मकानोंकी व्यवस्था होनी चाहिए और यूरोपीयोंको उनके साथ सहयोगी मनुष्योंकी तरह पेश आना चाहिए, उनको ऐसे एशियाई नहीं समझना चाहिए जिनके साथ उनका कोई नाता नहीं। गिरमिटिया भारतीय भी अच्छे-बुरेका विवेक रखता है।

१. इंडियन ओपिनियनके स्वर्ण अंक, १९१४ में ये शब्द यहाँ जोड़े गये थे।