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भाषण : वेरुलम में

है कि आपके अन्दर अपना जीवन होम करनेका, अपने-आपको बलिदान करनका साहस था। और इस सिलसिले में मैं आपको यह भी बतला दूंँ कि इस राहतके मिलनेके अन्य भी कई कारण हैं। मुझे माननीय सिनेटर मार्शल कैम्बैल द्वारा की गई बहुमूल्य सहायताका उल्लेख विशेष रूपसे करना पड़ेगा। मेरा खयाल है कि सीनेटमें यह विधेयक पास होनेके दौरान उन्होंने वहाँ जो कार्य किया था, उसके लिए वे मेरे और आपके धन्यवादके पात्र हैं। जो राहत मिली है वह इस प्रकारको है: आपको तीन-पौंडी कर अदा नहीं करना पड़ेगा, उसकी बकाया राशि माफ कर दी जायेगी। इसका मतलब यह नहीं कि आप अपने मौजूदा गिरमिटसे मुक्त हो गये हैं। मौजूदा गिरमिटकी अवधि तो आपको सचाई और ईमानदारीके साथ पूरी करनी ही है; हाँ, इसके पूरा होनेपर आप उतने ही स्वतन्त्र हो जायेंगे जितने कि १८९१ के अधिनियम २५ के अन्तर्गत अन्य भारतीय स्वतन्त्र हैं; और उस अधिनियममें उनको जो संरक्षण दिया गया है वह आपको भी मिल सकेगा। भारत लौटना या फिरसे गिरमिटिया बनना अनिवार्य नहीं रहेगा। आपको गिरमिटसे मुक्त होनेके प्रमाणपत्र बिना कोई फीस लिये दे दिये जायेंगे। यदि भारत जानेके बाद आप वहाँसे वापस आना चाहें, तो आपको नेटालमें पहले तीन वर्ष स्वतन्त्र भारतीयोंके रूपमें बिताने पड़ेंगे। और यदि आप गरीबीके कारण भारत जानेका खर्च जुटाने में असमर्थ हों और उसके लिए सरकारको प्रार्थना पत्र देकर चाहें तो सहायता हासिल कर सकते हैं; लेकिन उस सूरतमें आपको वापस लौटने की इजाजत नहीं दी जायेगी। यदि आप वापस आना चाहें तो सहायता मत लीजिये, अपनेसे खर्च जुटाइये या मित्रोंसे उधार ले लीजिए। यदि आप फिरसे गिरमिटया बनें, तो आप फिर उसी १८९१ के अधिनियम २५ के अधीन हो जायेंगे। आपको मेरी यही सलाह है कि फिरसे गिरमिटिया तो मत बनिए, परन्तु देशके सामान्य कानूनके अन्तर्गत अपने मौजूदा मालिकों की सेवा ठीक ढंगसे अवश्य करते रहिये। और यदि कभी कोई नई परिस्थिति सामने आई (जो मैं समझता हूँ नहीं आयेगी) तो आपको पता चल जायेगा कि क्या करना चाहिए।

विक्टोरिया काउन्टी हिंसासे उतना मुक्त नहीं रहा, जितना कि न्यूकैंसिल जिला। आपने बदलेमें चोट की थी। मैं इस बातको कोई महत्व नहीं देता कि आपको उत्ते- जित किया गया था या नहीं, पर आपने बदलेमें चोट तो की, आपने लाठियों और पत्थरोंका प्रयोग तो किया; आपने गन्नेमें आग तो लगाई। यह तो सत्याग्रह नहीं है । यदि उस समय मैं आपके साथ होता तो मैं आपकी निन्दा करता; एक भी लाठी या पत्थरका इस्तेमाल होने देने से पहले मैं अपना सिर फुड़वाना ज्यादा पसन्द करता । सत्याग्रहका अस्त्र संसारकी सभी लाठियों, पत्थरों और बन्दुककी बारूदसे कहीं अधिक शक्तिशाली है। यदि आपपर हिंसा थोपी जाये, तो आपको कष्ट-सहन करते जाना चाहिए, चाहे उसमें आप काम ही क्यों न आ जायें। यही है-- सत्याग्रह । इसलिए यदि मैं माननीय श्री मार्शल कैम्बैल, या श्री सॉण्डर्स या अन्य किसी मालिकके यहाँ एक गिरमिटिया भारतीयके रूपमें काम करता होता, और यदि मेरे साथ अन्यायपूर्ण बर्ताव किया जाता, तो मैं संरक्षकके पास नहीं जाता; मैं तो अपने मालिकके पास जाकर न्याय माँगता