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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हाथमें है। जो-कुछ प्राप्त हुआ है वह तो अंशमात्र है और अभी बहुत कुछ प्राप्त करना बाकी है। भारतीयोंको जिस विरोधका सामना करना पड़ रहा है, उसके बारेमें बोलते हुए श्री गांधीने कहा कि यद्यपि उनके प्रति बहुत अधिक दुर्भाव है, और वह अकारण तथा अनुचित भी है तथापि उस दुर्भावके पीछे भी न्यायकी भावना है। श्री गांधीने अपने देशभाइयोंसे अपील की कि वे धीरजसे काम लें और उन दुर्भावोंको अपने आचरणसे गलत साबित कर दें। यह सच है कि जितना उन्हें मिलना चाहिए था वह उन्हें नहीं मिला। परन्तु उन्हें अपने हककी सारी चीजोंका मिलना बहुत हद तक खुद उन्हींपर निर्भर करता है। प्रान्तीय रुकावटोंके बारेमें बोलते हुए श्री गांधीने कहा कि जबतक भारतीय अपने ही प्रान्तमें कंद रहेंगे तबतक संघ-राज्य उनके लिए कोई अर्थ नहीं रखता। वे (भारतीय) जहाँ चाहें वहाँ जानेकी उन्हें स्वतन्त्रता होनी चाहिए। उन्होंने इसके लिए अपील की है और वह उन्हें मिलनी चाहिए। अन्तमें श्री गांधीने ब्रिटिश संविधान और ब्रिटिश आदर्शोंके बारेमें बोलते हुए कहा कि जबतक यह इसी रूपमें रहेंगे और परम्पराएँ कायन रहेंगी तबतक तो ठीक है। परन्तु वह दिन एक दुदिन होगा जब संविधान ढह कर गिर जायेगा और आदर्श बदल जायेंगे। (करतल- ध्वनि) । यद्यपि में स्वदेशको लौट रहा हूँ। जो मुझे प्रिय है, तथापि में सबको विश्वास दिलाता हूँ कि में दक्षिण आफ्रिकाको कभी नहीं भुला सकूंगा। अपनी मातृभूमिके बाद मुझे सदा इसीका खयाल रहेगा। (करतल ध्वनि)।

कुमारी श्लेसिनको अभिनन्दनपत्र तथा पुस्तकें भेंट करनेवालोंके प्रति कुमारी इलेसिनकी तरफसे, धन्यवाद देनेके लिए श्री गांधी फिर उठे। उन्होंने कहा कि सत्याग्रहकी लड़ाईमें कुमारी इलेसिनने बड़ा महत्वपूर्ण भाग लिया है। उन्होंने अपने-आपको पूरी तरहसे लड़ाईमें झोंक दिया था; वे दिन-रात काम करती थीं। जेल जानेका प्रयत्न करनेमें भी उन्होंने कभी कुछ उठा नहीं रखा। परन्तु उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया। कई वर्षों तक वे मेरी सचिव रहीं। और सार्वजनिक कामोंमें मेरी बहुत मदद करती रहीं। वह मेरे लिए बहनसे कम नहीं हैं। उन्होंने ट्रान्सवाल-महिला-संघका संगठन किया और प्रारम्भसे ही उसकी अवैतनिक मन्त्राणीका काम करती रही हैं।

अध्यक्ष महोदय (माननीय आर० जेम्सन) ने उस घटनाका उल्लेख किया है जिसे में समझता था कि वे भूल चुके होंगे। में उस दिन उनके कार्यालयमें काँपता हुआ, किन्तु मनमें यह विश्वास लिये दाखिल हुआ था कि वे समाजके हितैषी हैं। उन्होंने बिलकुल ठीक ही कहा है कि जैसे कोई पिता अपने बच्चेका मार्गदर्शन करता है, उसी प्रकार उन्होंने (श्री जेम्सनने) उन बहुतसे कामोंमें मेरा मार्गदर्शन किया जो मैं एक तुच्छ नाग- रिककी हैसियतसे दक्षिण आफ्रिकाके उद्यान-जैसे सुन्दर इस नगरमें करना चाहता था।

१. नेटाल मर्क्युरीके अनुसार गांधीजीने यहाँ कहा था: व्यापारका प्रश्न बहुत बड़ा प्रश्न है, और अगर भारतीय समाजको शान्तिपूर्वक रहने देना है तो इस प्रश्नको सद्भावके साथ न्यायोचित ढंगसे तथ करना जरूरी होगा।"